गुणसूत्र क्या है इनकी खोज, संरचना, प्रकार और कार्य

इस आर्टिकल में आप गुणसूत्र की समस्त जानकारी पढ़ेंगे और समझेंगे।

गुणसूत्र क्या है

प्रत्येक जीव कोशिश में कोशिश विभाजन के समय केंद्रक में कुछ मोटे धागे के समाने रचनाएं दिखाई देती हैं, जिन्हें गुणसूत्र कहते हैं।

गुणसूत्र या क्रोमोजोम सभी वनस्पतियों व प्राणियों की कोशिकाओं में पाये जाने वाले तंतु रूपी पिंड होते हैं, जो कि सभी आनुवांशिक गुणों को निर्धारित व संचारित करते हैं। प्रत्येक प्रजाति में गुणसूत्रों की संख्या निश्चित रहती हैं। मानव कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है जो 23 के जोड़े में होते है।

इनमे से 22 गुणसूत्र नर और मादा में समान और अपने-अपने जोड़े के समजात होते हैं। संपादित करें गुणसूत्र की संरचना में दो पदार्थ विशेषत: सम्मिलित हैं-

(1) डिआक्सीरिबोन्यूक्लीइक अम्ल या डी एन ए (D N A), तथा (2) हिस्टोन नामक एक प्रकार का प्रोटीन। डी एन ए ही आनुवंशिक पदार्थ है।

डी एन ए (D N A) अणु की संरचना में चार कार्बनिक समाक्षार सम्मिलित होते हैं  दो प्यूरिन (purines), दो पिरिमिडीन्स एक शर्करा-डिआक्सीरिबोज और फासफ़ोरिक अम्ल। प्यूरिन में ऐडिनिन (Adenine) और ग्वानिन (Guanine) होते है और पिरिमिडीन में थाइमीन (Thymine) और साइटोसिन (Cytosine)।

डी एन ए (D N A) के एक अणु में दो सूत्र होते हैं, जो एक दूसरे के चारों और सर्पिल रूप में वलयित (spirallyicoiiled) होते है।

प्रत्येक डी एन ए (D N A) सूत्र में एक के पीछे एक चारों कार्बनिक समाक्षार इस क्रम से होते हैं-थाइमीन, साइटोसिन, ऐडिनीन और ग्वानिन, एवं वे परस्पर एक विशेष ढंग से जुड़े होते हैं।

इन चार समाक्षारों और उनसे संबंधित शर्करा और फास्फोरिक अम्ल अणु का एक एकक टेट्रान्यूक्लीओटिड होता है और कई सहस्त्र टेट्रान्यूक्लीओटिडों का एक डी एन ए (D N A) अणु बनता है।

प्राणियों में दो विशेष प्रकार के केंद्रसूत्र पाए जाते हैं। एक तो कुछ डिप्टरा इंसेक्टा में डिंभीय लारग्रंथि के केंद्रकों में पाया जाता है।

ये गुणसूत्र उसी जाति के साधारण गुणसूत्रों की अपेक्षा कई सौ गुने लंबे और चौड़े होते हैं। इस कारण इन्हें महागुणसूत्र कहते हैं।

इनकी संरचना साधारण समसूत्रण और अर्धसूत्रण केंद्रसूत्रों से कुछ भिन्न दिखाई पड़ती है। यहाँ एक गुणसूत्र के स्थान पर एक अनुप्रस्थ पंक्ति ऐसी कणिकाओं की होती है जिनमें अभिरंजित होने की योग्यता अधिक होती हैं।

गुणसूत्र के एक छोर से दूसरे छोर तक बहुत सी ऐसी अनुप्रस्थ पंक्तियों की सभी कणिकाएँ एक समान होती हैं और अन्य पंक्तियों की कणिकाओं में विशेषताएँ और विभिन्नताएँ होती है। इन गुणसूत्रों के अधिक लंबे होने के कारण यह समझा जाता है कि इनका पूर्ण रूप से विसर्पिलीकरण  होता है और कदाचित्‌ प्रोटीन का कुछ बढ़ाव भी होता हैं।

अधिक चौड़े होने के कारण यह है कि एक गुणसूत्र अपने समान एक दूसरे केंद्रक का संश्लेषण करता है। साधारण अवस्था में समसूत्रण के समय ये दोनों सूत्र एक दूसरे से पृथक्‌ हो जाते हैं, परंतु महागुणसूत्र में यह नहीं होता। दोनों सूत्र एक दूसरे से जुड़े ही रह जाते हैं।

महागुणसूत्र की संख्या साधारण गुणसूत्र की संख्या की आधी होती है, क्योंकि प्रत्येक सूत्र अपने समान दूसरे सूत्र से युग्मित हो जाता है। इस घटना को दैहिक युग्मन कहते हैं।

जंतुओं में विचित्र प्रकार का एक और भी गुणसूत्र पाया जाता है। इसक लैंपब्रश गुणसूत्र कहते हैं।

उदाहरण :- मनुष्य में 46 गुणसूत्र, प्याज में 16 गुणसूत्र, मटर में 14 गुणसूत्र, गोभी में 18 गुणसूत्र, कपास में 52 गुणसूत्र होते हैं।

गुणसूत्र की खोज किसने की थी

इसकी खोज सन् 1888 में वैज्ञानिक वाल्डेयर ने की थी।

गुणसूत्र के प्रकार 

गुणसूत्र दो प्रकार के होते है जो निम्नानुसार है -

(1)समजात गुणसूत्र

(2)विषमजात गुणसूत्र

समजात गुणसूत्र - ऐसे गुणसूत्र, जो रचना, आकार, आकृति, जीन क्रम, जीन संख्या व जीन दूरी में समान होते हैं, उन्हें समजात गुणसूत्र कहते हैं।

गुणसूत्र की संख्या एक जाति के जीवों में हमेशा निश्चित रहती है और यह अधिकतर जोड़ों में पाए जाते हैं।

विषमजात गुणसूत्र - ऐसे गुणसूत्र, जो रचना, आकार, आकृति, जीन क्रम, जीन संख्या में भिन्न होते हैं, उन्हें विषमजात गुणसूत्र कहते हैं।

गुणसूत्र की संरचना

गुणसूत्र की संरचना निम्नानुसार है -

1.पेलिकल तथा मैट्रिक्स

सभी गुणसूत्र बाहर से एक झिल्ली द्वारा ढके रहते हैं, इस झिल्ली को पेलिकल कहते हैं।

पेलिकल झिल्ली के भीतर एक जैलीय सदृश पदार्थ भरा होता है, जिसे मैट्रिक्स कहते हैं।

2. क्रोमोनिमेटा

मैट्रिक्स के अंदर आपस में लिपटे धागेनुमा सूत्र को क्रोमोनिमेटा कहते हैं, यह अधिक महत्वपूर्ण होते हैं, क्योंकि जीन्स भी इन्हीं पर स्थित रहते हैं।

3. क्रोमोमियर्स

क्रोमोनिमेटा पर दिखने वाले उभार को क्रोमोमियर्स कहते हैं। इन उभारों के कारण इनका आकार मढ़ि के आकार का हो जाता है।

कुछ वैज्ञानिकों ने बताया, कि यह उभार न्यूक्लिक अम्ल के संश्लेष्ण व जमाव के कारण बनते हैं। बल्कि कुछ वैज्ञानिकों ने बताया, कि यह क्रोमोनिमा सूत्र के अधिक घने कुण्डल बन जाने के कारण बनते हैं, एक क्रोमोनिमेटा पर क्रोमोमियर्स की संख्या या उभारों की संख्या हजारों तक हो सकती है।

4. सेंट्रोमीयर

गुणसूत्र की सबसे छोटी व लम्बी भुजा जिस स्थान पर मिलती है, उस स्थान को सेंट्रोमीयर कहा जाता हैं।

यह स्थान संकीर्णन के रूप में छोटा है, इसलिए इसे प्राथमिक संकीर्णन के नाम से जानते हैं। कुछ गुणसूत्रों में प्राथमिक संकीर्णन या सेंट्रोमीयर के अतिरिक्त दूसरा संकीर्णन भी पाया जाता है, जिसे द्वितीयक संकीर्णन कहते हैं। द्वितीयक संकीर्णन की संख्या कभी-कभी एक से अधिक होती है।

5. सैटेलाइट

कुछ गुणसूत्रों के सिरों पर गोलाकार लम्बी अथवा गुंडी के आकार की रचना पायी जाती है, जिसे सैटेलाइट कहते हैं।

गुणसूत्र के कार्य

गुणसूत्र जीवों के आनुवंशिक लक्षणों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहुँचाने में सहायता करते हैं। क्योंकि इन्हीं में आनुवंशिक पदार्थ पाया जाता है अर्थात् गुणसूत्र के द्वारा माता-पिता के लक्षण उनकी संतानों में पहुँचते हैं।

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