इस पोस्ट में आप मानव मस्तिष्क से संबंधित जानकारी पढ़ेंगे और समझेंगे।
मस्तिष्क जीव का एक महत्वपूर्ण अंग है यही हमारी सभी ज्ञानेंदियों आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा आदि पर नियंत्रण और नियमन रखता है।
तो चलिए मस्तिष्क की समस्त जानकारी को पढ़ना शुरू करते है।
मानव मस्तिष्क
मस्तिष्क पूरे शरीर तथा स्वयं तंत्रिका तंत्र का नियंत्रण कक्ष है जो जीव का सम्भवतः सबसे अधिक विशशीकृत अंग है।
यह खोपड़ी के मस्तिष्क बॉक्स से सुरक्षित रहता है और मुलायम तंत्रिकीय ऊतकों का बना होता है।
इसकी सबसे बाहरी स्तर को दृढतानिका या ड्यूरमेटर बीच के स्तर को जलतनिका या अरेक्नॉएड और अंदर की स्तर को मृदुतानिका या पायामेटर कहते है।
ड्यूरमेटर संयोजी ऊतकों की बनी एक कठोर रचना होती है जो करेनियम की दीवार से चिपकी रहती है इसमें रुधिर वाहिकाओं का जाल फैला रहता है जिनके द्वारा मस्तिष्क को O2 तथा भोज्य पदार्थो को पहुंचाया जाता है।
क्रेनियम की अस्थियों तथा ड्यूरमेटर के बीच एक सँकरी गुहा पायी जाती है जिसे एपीन्यूरल गुहा कहते है।
इसी प्रकार ड्यूरामेटर एवं पायामेटर के बीच की गुहा को अधि-दृढतानिका गुहा कहते है।
जालतनिका एवं मृदुतानिका के बीच की गुहा को अधिजाल तनिका गुहा कहते है।
इन सभी गुहाओं से लसीका के समान प्रमस्तिष्क मेरुद्रव अथवा सेरीब्रोस्पाइनल द्रव नामक एक विशिष्ट तरल पदार्थ भरा होता है जो मस्तिष्क को बाहरी झटको से बचाता है
दो स्थानों पर पायामेटर मस्तिष्क की पतली दीवारों से जुड़कर अंगुलाकार उभारो के रूप में मस्तिष्क की गुहा में लटकी रहती है।
मानव मस्तिष्क की संरचना
मानव मस्तिष्क तीन भागों से मिलकर बना होता है -
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अग्र मस्तिष्क या प्रोसेनसेफेलॉन
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मध्य मस्तिष्क या मीसेनसेफेलॉन
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पश्च मस्तिष्क या रॉबिनसेफेलॉन
अग्र मस्तिष्क या प्रोसेनसेफेलॉन- यह मस्तिष्क का सबसे अलग भाग होता है और चार भागो प्रमस्तिष्क, हाइपोथैलेमस, घ्राणपिंड एवं डायनसेफेलान का बना होता है।
प्रमस्तिष्क -
मनुष्य का प्रमस्तिष्क सबसे अधिक विकसित होता है और कुल मस्तिष्क का ⅔ भाग बनाता है।
प्रमस्तिष्क की बहरी सतह पर अनेक वलन पाए जाते है, इन वलनों को ग्यारी, एकवचन कहते हैं। मनुष्य का प्रमस्तिष्क एक मध्यवर्ती विदर या दरार द्वारा दो स्पष्ट भागों में बँटा होता है।इन भागो को प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध कहते है।
प्रत्येक प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध दरारों या खाँचो द्वारा पांच पिंडो में विभाजित रहता है जिन्हे क्रमशः फ्रॉणटल, पैराइटल, टेम्पोरल, ऑक्सिपिटल और इन्सुला पिंड कहते है लेकिन इंसुला पिंड बाहरी सतह से दिखाई नहीं देता।
प्रमस्तिष्क के मध्य में एक गुहा पायी जाती है, गुहा के चारो तरफ का प्रमस्तिष्क दो भागों का बना होता है, इसका बाहरी भाग कोर्टेक्स या धूसर पदार्थ कहलाता है और तंत्रिका कोशिकाओं का बना होता है। जबकि इसका भीतरी भाग स्वेत पदार्थ कहलाता है और तंत्रिका सूत्रों का बना होता है दोनों प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध श्वेत पदार्थो के तंतुओ के बने अनुप्रस्थ पट्ट कॉपर्स कैलोसम केवल स्तनियों में पाया जाता है प्रमस्तिष्क का कॉर्ट्रेक्स भाग विभिन्न कार्यो के नियंत्रण एवं समन्वय के लिए कई क्षेत्रो प्रेरक क्षेत्र, संवेदी क्षेत्र गर्मी, ठंड, दर्द, स्पर्श, प्रकाश, दाब, स्वाद, गन्ध और वाक् क्षेत्र में बँटा रहता है।
इन क्षेत्रों की तंत्रिका कोशिकाओं की क्रियाशीलता के कारण ही मनुष्य में याददाश्त बुद्धि एवं निर्णय लेने की क्षमता आती है।
हाइपोथैमस -
प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के आधार के ठीक पीछे मस्तिष्क का फर्श व पार्श्व भाग हाइपोथैमस कहलाता है।
यह भाग भूख और प्यास का आभास कराने के साथ, ताप की मात्रा तथा भावात्मक क्रियाओ का ज्ञान कराता है।
यह कुछ न्युरोहोर्मोन्स का भी स्त्रावण करता है जो पीयूष ग्रंथि के अग्र भाग के स्रर्वन को प्रेरित करते है।
यह पीयूष ग्रंथि के पश्च भाग में बनने वाले हार्मोन्स का संश्लेषण करके इन्हे रुधिर में छोड़ देता है।
घ्राणपिण्ड -
प्रमस्तिष्क गोलार्द्धों के अग्र सिरे पर दो पिण्ड पाए जाते है, जिन्हे घ्राण पिण्ड कहते है, ये गन्ध उद्दीपन को ग्रहण करते है।
डाएनसेफेलॉन -
प्रमस्तिष्क गोलार्द्ध के नीचे एक छोटा सा भाग डाएनसेफेलॉन स्तिथ होता है जो प्रतिपृष्ठ सतह से कीप जैसी रचना इनफणबुलम एक साथ थैली सदृश रचना जुड़ी होती है जो प्रतिपृष्ठ सतह से एक कीप जैसी रचना डाएनसेफेलॉन से ढँका रहता है। इस इंफंडीबुलाम से एक थैली सदृश रचना जुड़ी होती है जिसे हाइपोफाइसिस कहते है।
हाइपोफाइसिस और इनफणबुलम एक साथ मिलकर ही पीयूषकाय बनाते है जो कि एक प्रमुख अन्तःस्त्रावी ग्रंथि है।
पीयूषकाय के सामने ऑप्टिक कीएज्मा पाया जाता है जो वास्तव में दोनों दृष्टि तंत्रिकाओं का कटान बिंदु है।
मध्य मस्तिष्क -
यह दो भागों प्रमस्तिष्क तंतु एवं दृष्टि पिण्ड या कॉर्पोरा क्वाड्रीजमैना का बना होता है। मध्य मस्तिष्क मस्तिष्क के बीच में स्थित होता है तथा प्रमस्तिष्क गोलार्द्धों को अनुमस्तिष्क एवं पॉन्स से कोड़ता है।
मध्य मस्तिष्क के अधर एवं पार्श्वतल पर श्वेत पदार्थो से निर्मित दो तंत्रिका तंतुओ के पूलों या समूहों की पत्तियाँ पायी जाती है, जिन्हे प्रमस्तिष्क तंतु कहते हैं। इन्हे क्रूरा सेरीब्री भी कहा जाता है।
प्रमस्तिष्क तंतु प्रमस्तिष्क के कॉटेक्स को मस्तिष्क के शेष भागों तथा मेरूरज्जु से जोड़ते हैं और पश्च मस्तिष्क के अग्र भाग से प्रारम्भ होकर आगे की ओर प्रमस्तिष्क गोलार्द्धों तक फैले रहते हैं।
मध्य मस्तिष्क का पृष्ठ भाग चार गोल पिण्डों का बना होता है, जिन्हे दृष्टि पिण्ड या कॉर्पोरा क्वाड्रीजमाइना कहते है। सभी गोल पिण्ड ठोस होते हैं। इनमें गुहा नहीं पायी जाती है। मध्य मस्तिष्क में एक सँकरी गुहा आइटर होता है जो आगे की तरफ डायोसील और पीछे की और पश्च मस्तिष्क की गुहा से जुड़ी होती है।
पश्च मस्तिष्क -
यह मस्तिष्क का सबसे पिछला भाग है और तीन भागों का बना होता है (I) अनुमस्तिष्क, (II) पॉन्स और (III) मेडुला ऑब्लांगेटा। मेडूला ऑब्लांगेटा मस्तिष्क का सबसे पिछले भाग होता है और खोपड़ी के मस्तिष्क बॉक्स से बाहर निकलकर मेरूरज्जु बनाता है और खोपड़ी के मस्तिष्क बॉक्स से बाहर निकलकर मेरुरज्जु बन्नता है।
इसमें श्वसन ह्रदय गति, रुधिर वाहकाओ के संकुचन तथा शिथिलन कय और भोजन निगलने इत्यादि क्रियाओ के केन्द्री पाये जाते है। मेडुला ऑब्लांगेटा के ऊपर एवं प्रमस्तिष्क के पिछले भाग के नीचे अनुमस्तिष्क स्थित होता है, यह एक बड़ी ठोस और वलयित रचना है जो पश्च पृष्ठ सतह बनाती है।
अनुमस्तिष्क तीन पालियों में विभक्त रहता है इसका केंद्रीय भाग वर्मिस कहलाता है, इसके दोनों तरह दो पालियाँ स्थित होती है, जिन्हे पार्श्वपालियाँ कहते है। यह पेशियों के संकुचन तथा शिथिलन क्रियाओ का नियंत्रण एवं समन्वय करता है।
पॉन्स अनुमस्तिष्क के ठीक सामने और मेडूला ऑब्लांगेटा के ऊपर स्थित होता है और अनुमस्तिष्क के दोनों भागों एवं मेडूला ऑब्लांगेटातथा मध्य मस्तिष्क को जोड़ती है।
मस्तिष्क की गुहाएँ -
मस्तिष्क एक खोखली रचना है जिसके अंदर एक बड़ी गुहा पायी जाती है। इस गुहा का नामकरण मस्तिष्क के विभिन्न भागों के आधार पर करते है।
इस गुहा का नामकरण मस्तिष्क के विभिन्न भागों के आधार पर करते है। मेडूला ऑब्लांगेटाकी गुहा को चतुर्थ कहते है जो की मेरुरज्जु के केंद्रीय नाल के फैलने से बनती है।
इस गुहा की छत एक पतली संवहनीय झिल्ली के समान दीवार की बनी होती है जिससे पायामेटर एक उभार के रूप में इस गुहा में लटकती रहती है, इस उभार को पश्च रक्तक जालक कहते है। चतुर्थ गुहा की छत सेरेब्रोस्पाइनल द्रव को स्त्रावित करती है। इसमें तीन छोटे छोटे छिद्र भी पाये जाते है जिनमे होकर सेरेब्रोस्पाइनल द्रव मस्तिष्क के अवकाशों में जाता है। मध्य मस्तिष्क में गुहा नहीं के बराबर एक संकरे स्थान के रूप में पायी जाते है जिसे आइटर कहते है।
यह चतुर्थ गुहा को अग्रमस्तिष्क के पिछले भाग की गुहा जिसे तृतीय गुहा में भी पश्चरक्त जालक के ही समान एक उभार पाया जाता है जिसे अग्र रक्तक जालक कहते है दोनों ही रक्तक जालक की कोशिकाएँ सेरीब्रोस्पाइनल द्रव का स्त्रावण करती है, इसके साथ ही ये रुधिर वाहिनियों और मस्तिष्क की गुहा के बीच के द्रव के मध्य संबंध स्थापित करते है।
दोनों प्रमस्तिष्क गोलार्द्धों में भी दो गुहाएँ पायी जाती है इन गुहाओं को पार्श्व गुहाएँ कहते है। ये दोनों गुहाएँ संयिक्त रूप से एक छिद्र के द्वारा तृतीय गुहा में खुलती हैं। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि मस्तिष्क के बीच में एक खोखली गुहा पायी जाती है जिसमे सेरीब्रोस्पाइनल द्रव भरा।
यह गुहा ही मेरूरज्जु में नियमित होकर केंद्रीय नाल बनाती है और इससे भी सेरीब्रोस्पाइलन द्रव भरा होता है।
मानव मस्तिष्क का चित्र
मानव मस्तिष्क का वजन
कुल भार लगभग 1400 ग्राम होता है इसके चारों तरफ मस्तिकावरण नामक एक तीन स्त्रो की बनी झिल्ली पायी जाती है।
वयस्क व्यक्ति में मस्तिष्क का वजन 1000 से 2000 ग्राम के बीच होता है।
इसकी संरचना 78% पानी, 10% वसा और 8% प्रोटीन है। मस्तिष्क की मुख्य शारीरिक विशेषता इसके सिलवटों या दृढ़ संकल्प हैं। यह मस्तिष्क प्रांतस्था का हिस्सा है, जो मस्तिष्क के बाहरी आवरण है।
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