इस पेज पर आप जीभ से सम्बंधित समस्त जानकारी पढ़ेंगे।
जीभ हमारे शरीर के मुख्य अंगो में से है इसका संबंध सीधा पेट से होता है इसलिए जीभ के बदलाब होने पर डॉक्टर बीमारी का पता लगा लेते है।
तो चलिए जानते है जीभ से जुड़े रोचक तथ्य।
जीभ से सबंधित जरुरी जानकारी
मुँह के अंदर लाल रंग का हिस्सा जो मोटा और मांसल होता है वह ग्रसनी और गुहिका के तल पर फैला रहता है उसे जीभ कहते है।
स्तनियों में जीभ सबसे अधिक विकशित और चल होती है, जीभ का केवल अगला भाग ही स्वतंत्र होता है और बाकि भाग मोटी पेशी युक्त जड़ द्वारा हाईऔइड एवं निचले जबड़े के कंकाल से जुड़ा रहता है।
जीभ का स्वत्रंत भाग भी निचली सतह के बीच में श्लेष्मिक कला के भंज जिह्वा संधायक द्वारा मुख गुहिका के तल से जुड़ा रहता है जीभ का भाग मुख के बाहर निकलता है और मुँह में चारो और घुमाया जा सकता है।
जीभ पाचन तंत्र में भोजन को मुँह से आमाशय तक ले जाने में सहायता करती है।
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जीव द्वारा सेवन किए गए भोजन में जीभ मुँह में लार मिलाने, चाबने के लिए बार-बार दांतो के तल पर लाने के साथ अंदर तक निगलने में मदद करती है।
पूरी जिह्वा पर भूणीय एण्डोडर्म से युक्त शल्की एपिथीलियम की बनी श्लेष्मिक कला का आवरण होता है अंदर के ऊतक में सभी दिशाओ में फैली अंतस्थ रेखित पेशियों तथा जीभ की जड़ की बहिस्थ रेखित पेशियाँ होती है जिह्वा की सभी गतिया इन्ही पेशियों के कारण होती है।
जीभ के ऊपर की सतह खुरदरी होती है इसके मुखीय भाग में खुरदरापन अनेक सूक्ष्म जिह्वा अंकुरों के कारण परन्तु शेष ग्रसनीय भाग में लसिका ऊतक की छोटे-छोटे गांठो के कारण होता है
जिह्वा के ऊपर छोटे-छोटे नुकीले और धागेनुमा उभार होते है जो पूरे जीभ पर फैले रहते है इन धागेनुमा संरचना में स्वाद कलिकाएँ नहीं होती है।
धागेनुमा सरंचना के बीच-बीच में और उनसे बड़े लाल दानो के रूप में छातेरूपी अंकुर होते है ये भी पूरे जिह्वा पर फैले रहते है इन में से हर एक में मुख्यतः 5 स्वाद कलिकाएँ होती है।
सीमावर्ती खांचे के निकट जिह्वा के दोनों पल्लो में लाल पत्तीनुमा अंकुरों की छोटी छोटी शृंखलाएँ होती है इन अंकुरों में भी स्वाद कलिकाएँ होती है।
सीमावर्ती खांचे के ठीक आगे और इसके समानांतर उलटे 'v' की आकृति की एक ही लाइन में स्तिथ होते है इन में से हर एक में 100 से 300 स्वाद कलिकाएँ होती है।
जीभ के छाले ठीक करने के घरेलु उपाय
बर्फ -
बर्फ का एक टुकड़ा जीभ पर रखे आप जितनी देर तक बर्फ की ठंडक को बरदास कर सकते है तब तक बर्फ के टुकड़े को जीभ पर रखे उसके बाद उठा ले और फिर से यही प्रकिया दुहराय। इस उपचार को आप दिन में कई बार कर सकते है।
तुलसी -
तुलसी के पत्तो को नमक मिला कर चबाने से पत्तो से जो रस निकले उसे चूसते जाए, यह रस छालो के घाव भरने में मदद करता है।
तुलसी में एंटी-इंफ्लामेट्री, एंटी-बैक्टीरियल और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं। जीभ पर छाले से छुटकारा पाने के लिए आप तुलसी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।
हल्दी -
हल्दी में एंटीसेप्टिक गुण होते है जो छालो को ठीक करने में मदद करते है हल्दी को शहद या दूध में घोल कर पूरी जीभ पर लगा दे और दो तीन मिनट तक लगा रहने दे उसके बाद पानी से कुल्ला कर ले ऐसा आपको दिन में दो बार करना है और जब तक छाले पूरी तरह से ठीक न हो जाए तब तक आप यही प्रकिया दिन में दो बार कर सकते है।
एलोवेरा जेल -
ताजे एलोवेरा के पत्ते को तोड़ कर उसके जेल को निकाल ले और पूरी जीभ पर उस जेल को लगा ले और जेल कम से कम 5 मिनट तक जीभ पर लगा रहने देना है उसके बाद गुनगुने पानी से कुल्ला कर ले ऐसा आपको दिन में दो बार करना है हो सके तो जेल को 10 मिनट तक लगा कर रखे उसके बाद कुल्ला करे।
एलोवेरा जेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो जीभ के छाले के लक्षण जैसे सूजन और दर्द को कम कर सकते हैं।
गुनगुना पानी -
1 गिलास पानी में 1/2 चम्मच नमक डालकर गुनगुना गर्म कर ले उसके बाद उस पानी से कुल्ला करे, यह प्रकिया आपको दिन में जितने बार हो सके उतनी बार कर सकते है।
शहद -
शहद में एनाल्जेसिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं, जो जीभ के छाले का इलाज करने में सहयोगी साबित हो सकते हैं।
सूती के कपड़े को पानी में गिला करके बॉल जैस बना ले अब उस बॉल में शहद लगा ले और उस शहद को कपड़े की मदद से पूरी जीभ पर लगा ले, लगाने के 5 मिनट बाद गुनगुने पानी से कुल्ला कर ले, यह प्रकिया आपको दिन में दो तीन बार करना है और जब तक छाले पूरी तरह से ठीक न हो जाए तब तक आप इसे कर सकते है।
ग्लिसरीन -
एक चम्मच ग्लिसरीन में जितनी हल्दी घुल जाए उतनी डाल दे और पेस्ट बना ले इस पेस्ट को पूरी जीभ पर लगा ले और 5 मिनट बाद जीभ को गुनगुने पानी से धो ले, यह प्रकिया आप दिन में दो बार करे आपको ऐसा तक तब करना है जब तक छाले ठीक न हो जाए।
बेंकिग सोडा -
बेकिंग सोडा में मौजूद एंटी-बैक्टीरियल गुण जीभ के छालों के बैक्टीरिया को मारता है और उनसे आराम पाने में मदद करता है और संक्रमण को रोकने में मदद करता है।
सोडे को गुनगुने पानी में मिला कर घोल बना कर पूरी जीभ पर लगाना है और 3 मिनट बाद इस घोल को पानी से कुल्ला करके बाहर कर देना है। इस प्रकिया को दिन में दो बार जब तक करे जब की छाले पूरी तरह से ठीक न हो जाए।
जीभ का रंग बदलने का कारण
डॉक्टर चेकअप के द्वारा कई बार जीभ दिखाने को भी कहते है क्योकि कई रोग ऐसे होते है जिन्हे जीभ देख कर भी बताया जा सकता है हमारी जो जीभ होती है वह किसी भी प्रकार के रोग होने पर अपना हल्का सा रंग रूप बदल देती है जिसे देख कर डॉक्टर बीमारी का पता लगा लेते है।
1. जीभ पर सफेद पैचेज जैसी या धब्बेनुमा सरंचनाए जीभ पर कैंडिडा नाम की फफूद का जमाव का संकेत देती है। यह यीस्ट प्रजाति की होती है जो हमारे शरीर को बहुत ज्यादा नुकसान पहुँचाती है।
इसके इलाज के लिए सबसे पहले टंग क्लीनर से जीभ को रोज दिन में दो बार अच्छे से साफ करे और एंटीफगल दवा से कुल्ला करे।
2. जीभ का कालापन और बाल जैसी सरंचना जैसे होने पर फफूंद का इंफेक्शन, डायबिटीज, कीमोथेरिपी या मुँह की ठीक तरह सफाई न होना बताती है, इन सब से छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले डॉक्टर से सलाह ले और कुछ भी खाने के बाद नियमित रुप से कुल्ला करे।
3. तम्बाकू, और अल्कोहल जैसे खाद्य का सेवन करने से जीभ का कैंसर हो सकता है इसे ही माउथ कैंसर या ओरल कैंसर के नाम से जाना जाता है, इस में ही मुँह में छाले, कोशिकाओं में ट्यूब और घाव बनने लगते है।
यदि सही समय पर इसकी देखभाल न की जाए तो मरीज के शरीर के कई अंग प्रभावित हो सकते है और जीभ भी खोनी पड़ सकती है।
4. जीभ का फटना जिसे फिशर्ड टंग भी कहा जाता है। यह कई कारणों से फट सकती है जैसे विटामिन की कमी, लम्बे समय से बुखार, आइसीयू में भर्ती, गंभीर बीमारी, बढ़ती उम्र, वायरल इन्फ़ेक्सन आदि इसमें मरीज को किसी भी इलाज की जरूर नहीं पड़ती है जब तब मरीज को कोई दिक्क्त न हो।
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