मानव कंकाल तंत्र की संरचना, चित्र और कार्य

इस आर्टिकल में आप कंकाल तंत्र से संबंधित जानकारी पढ़ेंगे और समझेंगे।

शरीर  निश्चित आकृति देने के लिए एक ढाँचे की जरूर होती है यह ढांचा हड्डियों का बना होता है जिसे कंकाल तंत्र कहते है।

इस ढांचे के बिना चला फिरना, काम करना बोलना, उठना बैठना कोई भी क्रिया सम्भव नहीं है। कंकाल तंत्र अस्थित, उपास्थि, संधिया आदि से मिल कर बना होता है।

तो चलिए कंकाल तंत्र की समस्त जानकारी को विस्तार से पढ़ते है।

कंकाल तंत्र (Skeletal system)

कशेरुकी प्राणियों में कंकाल तंत्र अस्थि एवं उपास्थि का बना होता है। ये शरीर के कठोर भाग का निर्माण करते है।

उपास्थि, अस्थि की तुलना में कोमल तथा लचीला होता है। ये संयोजी ऊतक होते हैं। मनुष्य के शरीर में कुल 206 अस्थियाँ पायी जाती हैं।  सबसे बड़ी अस्थि पैर की फीमर तथा सबसे छोटी अस्थि कण में पायी जाने वाली ऑसिकल होती है।

कंकाल तंत्र के कार्य (Functions of Skeletal System)-

कंकाल तंत्र के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं-

(1) संरचनात्मक ढाँचा बनाना - यह शरीर को एक निशिचत आकार देकर इसका ढांचा बनाता है।

(2) अन्तरंगों की सुरक्षा - यह शरीर के कोमल अंगों जैसे- ह्रदय फेफड़े इत्यादि की रक्षा करता है।

(3) आधार प्रदान करना - यह शरीर में पायी जाने वाली पेशियों के लिये जुड़ने का आधार देता है जिसके कारण ही जन्तुओ में गति एवं प्रचलन होता है।

(4) शरीर को एक साथ बाँधकर रखना - यह सम्पूर्ण शरीर को एक साथ बांधे रखता है।

(5) गति एवं प्रचलन - जंतु शरीर की लभगभ 40% कंकाली पेशियाँ समूहों में स्थित हो टेण्डन का निर्माण करती है। इन टेण्डन की सहायता से कुछ अस्थितयाँ उत्तोलक का कार्य करती है जिससे विभिन्न अंगों में गतियाँ होती है।

(6) श्वासोच्छवास में शाया करना - यह श्वासोच्छवास करता है।  यह कर्णास्थतियों के द्वारा सुनने में भी सहायता करता है।

(7) रुधिर कोशिकाओं का निर्माण -बड़ी अस्थियों के मध्य में एक गुहा पायी जाती है, जिसे मज्जा गुहा कहते है, इस गुहा में रुधिर कोशिकाओं का निर्माण होता है।

(8) संग्राहक के रूप में- यह कुछ लवणों जैसे-कैल्सियम और फॉस्फेट के लिए संग्रहालय का कार्य करता है, जो आवश्यकतानुसार विभिन्न कार्यो में सहायता करते है। 

(9) भोजन ग्रहण करने में सहायता - यह भोजन को काटने तथा ग्रहण करने में मदद करता है।

कंकाल तंत्र के प्रकार (Types of Skeleton)

शरीर में स्थिति के आधार पर कंकाल दो प्रकार का होता है -

  1. बाह्य कंकाल

  2. अन्तः कंकाल 

कंकाल तंत्र

(1) बाह्य कंकाल(Exo-skeleton)- शरीर की बाहरी सतह पर पाया जाने वाला कंकाल जिसकी उत्तपति त्वचा की चरम अथवा अधिचर्म से होती है, उसे बाह्य कंकाल कहते है।

निम्न श्रेणी के कशेरुकियों में बाह्य कंकाल शल्क (मछली, सरीसृप), पंख (पक्षियों और नाख़ून के रूप में, जबकि स्तनियों में यह दाँत, बाल, खुर नाख़ून, सींग इत्यादि के रूप में पाया जाता है बाह्य कंकाल शरीर के आंतरिक अंगों की रक्षा करता है और मृत होता है।

इसकी उतपत्ति अधिचर्म या चर्म से होती है। अतः बाह्य कंकाल की उत्पत्ति भ्रूणीय बाह्य स्तर या मध्य स्तर या से होती है।

(2) अन्तः कंकाल (Endo-skeleton)- शरीर के अंदर पाये जाने वाले कंकाल जिसकी उत्पत्ति चरम से होती है, उसे अन्तःकंकाल कहते है।

अन्तःकंकाल सभी कशेरुकियों में पाया जाता है और हमेशा शरीर के अंदर स्थित होता है तथा मांस व पेशियों से ढँका रहता है, यही कशेरुकियों का मुख्य कंकाल है और इनके शरीर का मुख्य ढांचा या आधार बनाता है।  

संरचनात्मक दृष्टि से अन्तःकंकाल के दो प्रकार अस्थि और उपास्थि होते है।

अन्तःकंकाल एक प्रकार का संयोजी ऊतक है जिसकी उत्पत्ति चर्म अर्थात भूर्ण की मध्य स्तर से होती है।

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