शरणार्थियों के पुनर्वास का सवाल

गाहे-बगाहे सरकार कभी कश्मीरी पंडितों के या कश्मीरी हिंदुओं के पुनर्वास की बात करती है । अब गलती से ही सही देश से बाहर से आए रोहिंग्या मुसलमानों के पुनर्वास की बात कर रही है । पाकिस्तान ,अफगानिस्तान , बांग्लादेश आदि पड़ोसी देशों से पलायन करके भारत आने वाले हिंदू जो उन मुल्कों में अल्पसंख्यक हैं के भारत में पुनर्वास के लिए बाकायदे संविधान संशोधन के द्वारा नागरिकता कानून में परिवर्तन ला करके उनका पुनर्वास किया जाता है । अगर मेरी याददाश्त सही है तो हमने 12वीं के दौरान अंग्रेजी की पुस्तक में एक कहानी पढ़ी थी जिसका शीर्षक ' अ गर्ल विद वास्केट ' है और जिसे अंग्रेज लेखक विलियम सी डग्लस के द्वारा लिखा गया है जो अपनी यात्रा के दौरान दिल्ली से रानीखेत जा रहे थे । अपनी यात्रा के दौरान बीच के स्टेशन पर एक 7 या 8 साल की लड़की मिली जो बांस से बनी टोकरी बेच रही थी । संयोगवश विलियम सी डग्लस को लगा कि शायद यह लड़की भीख मांग रही है और उन्होंने अपनी जेब से कुछ पेंस निकाल कर उसकी टोकरी में डाल दी तब उस लड़की ने कहां की वह भीख के पैसे नहीं लेती आपको टोकरी खरीदनी पड़ेगी । लड़की अच्छी अंग्रेजी भी बोल रही थी , लेखक महोदय लड़की की इन दोनों बातों से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने ना केवल अपनी यात्रा वृतांत का शीर्षक दिया ' अ गर्ल विद वॉस्केट ' बल्कि लौटने के बाद वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिले  और उस लड़की की खुद्दारी का जिक्र किया । इस बात से पंडित जी भी बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने उस लड़की को सम्मानित किया ।  जैसा कि लेखक ने अपनी पुस्तक में इस बात का जिक्र किया है कि वह लड़की शरणार्थी थी जो भारत-पाकिस्तान बंटवारे के समय भारत आए वे परिवार थे जो पाकिस्तान में अपना घर-द्वार , खेत-खलिहान सब कुछ छोड़कर भारत चले आए थे परंतु यहां आने के बाद उन्हें स्थाई छत भी मयस्सर ना हो सकी और मजबूरी में  रेल स्टेशनों अथवा बस स्टैंडों के आसपास झोपड़ी लगाकर रह रहे थे और बांस की टोकरी आदि बनाकर के गुजर बसर कर रहे थे । सवाल यही है की आजादी के 75 साल हो गए हैं।इन 75 सालों में विभिन्न सरकारें आईं और गईं । लाल किले की प्राचीर कईयों प्रधानमंत्री के भाषणों की गवाह बनी । इन 75 सालों में बंटवारे के दंश को झेलकर पाकिस्तान से आए हुए इन शरणार्थी परिवारों के लिए संभवतः पुनर्वास के उपाय किए गए होंगे ।परंतु बदकिस्मती से आज भी बहुत से रेलवे स्टेशनों और बस स्टैंडों के आसपास यह शरणार्थी परिवार झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हुए पाए जाते हैं । यह आज भी मजबूर हैं,खानाबदोश जिंदगी जीने के लिए । स्टेशनों और बस स्टैंडों के पास इसलिए रहते हैं कि एक तो इनके पास कोई स्थाई घर नहीं है , दूसरा एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने के लिए परिवहन साधनों की सुविधा उपलब्ध रहती है , तो मेरा सरकार, समाज और देश के लोगों से यही सवाल है कि क्या जरूरत नहीं है कि जब हम आजादी के 75 वर्ष पूर्ण कर चुके हैं ? जब हम अमृत काल में प्रवेश कर चुके हैं तो बंटवारे का सबसे वीभत्स परिणाम झेलने वाले इन शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए सरकार सहित समाज,देश और देश के अंदर एनजीओ आदि को आगे कदम बढ़ाने की आवश्यकता है ।

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Comments
Avinash Pratap Deo - Sep 1, 2022, 5:12 AM - Add Reply

Right view about refugee problem.

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About Author

I have completed my post graduation in modern history from BHU Varanasi. I have qualified exam of ugc net in History.