बेन्थम एवं हुकर ने प्राकृतिक पध्दति के अनुसार आवृतबीजी को द्विबीजपत्री व एकबीजपत्री में विभक्त किया। भारत में इस पध्दति का ही अनुसरण करते हैं, द्विबीजपत्री को तीन उपवर्गों-पॉलिपेटेली, गेमोपेटेली तथा मोनोक्लेमैडी में विभक्त किया गया।
एकबीजपत्री और द्विबीजपत्री पौधों में अंतर
क्र. | एकबीजपत्री पौधे | द्विबीजपत्री पौधे |
1. | बीज में बीजपत्रों की संख्या एक होती है। | इसमें दो बीजपत्र होते है। |
2. | पुष्प प्रायः त्रितयी अर्थात पुष्पांग प्रायः तीन के जोड़े में होते है। | पुष्प प्रायः चतुरतई एवं पंचतयी होते है अर्थात इसमें पुष्पांग 4 या 5 के जोड़े में होता है। |
3. | प्रायः अपस्थानिक जड़े तथा इनमें सिंवहन पूल प्रायः 8 -32 होती है। | इसमें प्रायः मुसला जड़े तथा। इनमें संवहन पूल 2-6 होती है। |
4. | तने में संवहन पूल बिखरे हुई होते है | इसमें संवहन पूल घेरे में व्यवस्थित होती है तथा संवहन पूलों में कैम्बियम की पट्टी उपस्थित होती है। |
5. | पत्तियों में शिराएँ एक-दूसरे के समानांतर होती है। | इसमें शिरा-विन्यास जालिकवत शिराओ का जाल होता है। |
6. | इसमें जाइलम एवं फ्लोएम की संख्या अधिक होती है। | इसमें जाइलम एवं फ्लोएम की संख्या सीमित होती है। |
7. | इसमें मज्जा बड़ा एवं अच्छी तरह विकसित होता है। | इसमें मज्जा अनुपस्थित या कम विकसित होता है। |
8. | एकबीज पत्री में द्वितीयक वृध्दि नहीं होती है | द्विबीजपत्री में द्वितीयक वृध्दि होती है। |
9. | जाइलम का आकार गोलाकार और अंडाकार होता है | इसमें जाइलम का आकार कोणीय एवं अकोणीय होती है। |
10. | केला मक्का गन्ना ताड़ आदि। | उदाहरण - मटर, सेम, मूंगफली आदि |
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