हरिवंश राय बच्चन, हालावाद के प्रवर्तक है।
जीवन परिचय-
हालावाद के प्रवर्तक हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 ई. में इलाहबाद (प्रयागराज ) में के साधारण कायस्थ परिवार में हुआ। आपके पिता श्री प्रतापनारायण शीवासतव साहित्यिक रुचि सम्पन्न व्यक्ति थे। माताजी श्रीमती सरस्वती देवी धार्मिक संस्कार प्राप्त थी।
'बच्चन जी ने काशी तथा प्रयाग में शिक्षा प्राप्त की। आपने इलाहाबाद विश्विधालय से बी. ए. एवं एम. ए परीक्षाएँ उत्तीर्ण की। 1954 में आपने कैम्ब्रिज विश्वविधालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, फिर प्रयाग विश्वविधालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता हो गये। इसके पश्चात् आपने आकाशवाणी किया। बाद में भारत सरकार के विदेश विभाग में आपकी नियुक्ति हुई आपने वही से अवकाश ग्रहण किया। 1966 में आपको राजयसभा के सदस्य होने का सम्मान प्राप्त हुआ।
1969 में हरिवंश रे बच्चन को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया। 1976 में हिंदी साहित्य में इनके योगदान के लिए इन्हे पदम् भूषण से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त बच्चन जी को कई अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया। इनमे सरस्वती सम्मान, नेहरू अवार्ड, लोटस अवार्ड इत्यादि प्रमुख है 18 जनवरी, 2003 को 95 वर्ष की आयु में मुंबई (बंबई ) में आपका देहावसान।
रचनाएँ-
(1) काव्य संग्रह - 'तेरा हार' (1929 ) मधुशाला (1935), मधुबाला (1938), मधुकलश (1943), निशा निमंत्रण (1938), एकांत संगीत (1939) आकुल-अंतर (1943), सतरंगिणी (1945), मिलनयामिनी (1950), आरती और अंगारे (1958) नये पुराने झरोखे, टूटी फूटी कड़ियाँ इत्यादि। इनके अतिरिक्त भी बच्चन जी के अनेक काव्य-संग्रह प्रकाशित हुई।
(2) आत्मकथा (कुल चार खण्डों में प्रकाशित )- क्या भूलु क्या याद करूँ (1969), नीड़ का निर्माण फिर (1970), बसेरे से दूर (1977), दशद्वार से सोपान तक (1985),
(3) अनुवाद - मैकबेथ (1957), जंगीता (1958), हैमलेट (1969).
(4) डायरी - प्रवासी की डायरी (1971).
भाव पक्ष -
(1) हालावादी दर्शन- हरिवंश राय बच्चन की प्रारम्भिक कविताओं में, विशेषकर मधुशाला में फारसी के मध्ययुगीन कवि उम्र ख़य्याम का मस्तानापन एक अद्भुत अर्थ-सिस्टर पाता है।
(2) रहस्यवादी भावना- हरिवंश राय बच्चन वैसे तो हालावादी कवि के रूप में प्रख्यात है किन्तु उनकी रचनाओं में हालावाद के साथ साथ रहस्यवादी भावना का भी अनूठा एवं अद्भुत संगम देखने को मोलता है। छायावादी कवियों की तरह ही उनकी रचनाओं में भी रहस्यवादी भावना की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।
(3) प्रेम और सौंदर्य - हालावाद के प्रतिनिधि कवि हरिवंश राय बच्चन की रचनाओं में प्रेम और सौंदर्य का अनूठा संगम देखने को मिलता है। इन्होने अपनी रचनाओं में प्रेम और मस्ती की एक नव धारा प्रवाहित की।
प्रेरणाप्रद रचनाकार - उन्होंने एक कवि के रूप में अनेक ऐसी अद्र्भुत कविताओं की रचना की जो निराशम हताश व्यक्ति के लिए अवसाद के क्षणों में प्रेरणा का संबल प्रदान करती है।
कला पक्ष -
(1) भाषा - हरिवंश राय बच्चन की भाषा शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली है। संस्कृत की तटसँ शब्दावली का आपकी रचनाओं में प्रचुरता में प्रयोग हुआ है साथ ही साथ, तद्रभव शब्दावली, उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेजी इत्यादि भाषाओ के शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता है। आपने सदैव सीधी-सादी जीवन्त भाषा को ही अपनाया।
(2) शैली- कविवर हरिवंश राय बच्चन ने मुख्तयः प्रांजल शैली का प्रयोग किया जिसके चलते आपका साहित्य काव्य-प्रेमियों के मध्य अत्यधिक लोकप्रिय हुआ।
अलंकार-योजना - बच्चन के साहित्य में प्रेम, सौंदर्य और मस्ती का अद्र्भुत संगम है। इन्होने अपनी रचनाओं में शब्दालंकार और अर्थलंकार दोनों का सफल प्रयोग किया है। इनके साहित्य में यमक, अनुप्रास, श्लेष, पुनरुक्तिप्रकाश, उपमा, रूपक, पदमैत्री, स्वर-पैंट्री मानवीकरण आदि अलंकारों का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
साहित्य में स्थान -
हालावाद के प्रवर्तक कवि हरिवंश राय बच्चन शुष्क एवं नीरस विषयो को भी सरस ढंग से प्रस्तुत करने में सिद्धहस्त थे। वे छायावादोत्तर युग के प्रख्यात कवि है। हरिवंश राय बच्चन जैसे महान और उच्चकोटि की विचारधारा वाले कवि कई प्रख़्याल कवि है। हरिवंश राय बच्चन जैसे महान और उच्चकोटि की विचारधारा वाले कवि कई सदियों में जन्म लेते है। उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं में सफल लेखनी से हिंदी-साहित्य की अभूतपूर्व सेवा की है। हिंदी साहित्य में उनका स्थान अद्वितीय है।
You must be logged in to post a comment.