हजारी प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय

जीवन परिचय -

आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकदशी संवत 1964 तदनुसार 19 अगस्त, 1907 ई. को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के दुबे का छपरा नामक ग्राम में हुआ। आपके पिता पं. अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे। आपकी माता श्रीमती ज्योतिकली देवी एक धर्मपरायण महिला थी।  आपके बचपन का नाम वैधनाथ द्विवेदी था। आपकी शिक्षा गांव के स्कूल से ही आरम्भ हुई। आपके बसरीकापुर के मिडिल स्कूल से मिडिल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। पाराशर बाह्यचर्य आश्रम में संस्कृत का अध्ययन मिडिल की परिक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।  पाराशर ब्रह्यचर्य आश्रम में संस्कृत का अध्ययन किया। 1923 में काशी आए व 1927 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से हाई स्कूल किया। इसी वर्ष भगवती देवी से आपका विवाह हुआ। 1929 में आपने की परीक्षा उत्तम रही की 1930 में आपने कासी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिष तथा साहित्य में आचार्य की उपाधि प्राप्त की। 1930 में ही आपने शांति निकेतन में हिंदी व संस्कृत के अध्यापक के पद पर कार्य किया।  वहां रवीन्द्रनाथ व क्षितिमोहन सेन के सम्पर्क में काकर स्वतंत्र लेखन शुरू किया। 20 वर्ष शांति निकेतन में रहने पर काशी हिन्दू विष्वविधालय में हिंदी विभाग में नियुक्त हुए।  इसके बाद पंजाब विश्वविधालय लौट आए तथा रेक्टर पद पर कार्य किया। 1970 में इस पद से मुक्त होकर आजीवन उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनउ के उपाध्यक्ष पद पर रहे 19 मई 1979 को ब्रेन ट्यूमर  दिल्ली में आपका निधन हो गया।

लखनऊ विश्वविधालय में  डी. लिट् की मानद उपाधि से सम्मानित किया आपको साहित्य अकादमी पुरस्कार, भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण, मंगलप्रसाद पारितोषिक तथा सूर साहित्य पर इंदौर साहित्य समिति द्वारा स्वर्ण- पदक प्रदान किया गया।

रचनाएँ -

द्विवेदी जी उपन्यासकार, ललित निबंधकार, आलोचक आदि थे। उनकी रचनाएँ निम्नलिखत है -

(1) आलोचना - सुरसाहित्य कबीर, मध्यकालीन बोध का स्वरूप, नाथ सम्प्रदाय, कालिदास की लालित्य योजना, हिंदी साहित्य का आदिकाल, हिंदी साहित्य की भूमिका, हिंदी साहित्य : उदभव और विकास, आधुनिक हिंदी साहित्य पर विजय।

(2) निबंध-संग्रह - अशोक के फूल, कल्पलता, विचार और वितर्क, कुटज विचार- प्रवाह, आलोक पर्व, प्राचीन भारत के कलात्मक विनोद।

(3) उपन्यास- बाणभट्ट की आत्मकथा, चारुचंद्र लेख, पुनर्नवा, अनामदास का पोथा। 

(4) ग्रंथ सम्पादन - संदेश रासक, पृथ्वीराज रासो, नाथ सिद्दो की बनियाँ।विश्वभारती (शान्ति निकेतन) पत्रिका का सम्पादन, महापुरुषों का स्मरण।

भाषा -

शिक्षित परिवार से जुड़े कारण अआप्की भाषा परिमार्जित व परिष्कृत है।  इसी कारण आपकी भाषा को प्रसन्न कहते है आपने संस्कृत, उर्दू व् बोलचाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग किया है। साथ ही भाषा को बोधगम्य बनाने के लिए आपने सूक्तियों मुहावरों व कहावतों का भी सटीक प्रयोग किया है।

शैली -

द्विवेदी जी की शैली में विविधता देखने को मिलती है-

(1) सूत्रात्मक शैली - कथन में विलक्षणता और चमत्कार लाने के लिए इस शैली को अपनाया गया।

(2) व्यंग्यात्मक शैली - द्विवेदी मीठी चुटकियां लेने में बड़े कुशल थे। किसी बात को सीधा न कहकर व्यंग्य के माध्यम से कह देते थे।

(3) विचारात्मक शैली - आपके समस्त निबंध इसी शैली में लिखे गए है।  यह शैली गंभीर तथा विचार प्रधान है। गंभीर से गंभीर विषय को कुशलता तथा बोधगम्य ढंग से कह देते है।

(4) वर्णात्मक शैली - विषय को सरस् बनाने के लिए इस शैली का प्रयोग किया गया।  आपकी यह शैली चित्र-सा प्रस्तुत कर देती है इसमें भाषा सरल तथा प्रवाहपूर्ण हो जाती है।

(5) गवेषणात्मक शैली -शोध और पुरातत्व से संबंधित नोबंधो की रचना इसी शैली में हुई है। यह द्विवेदी जी की प्रतिनिधि शैली है।

साहित्य में स्थान -

द्विवेदी जी उच्च कोटि के अनुसंधान, आलोचनक, निबंध लिखक और विचारक रहे।  गद्य -साहित्य में आपका महत्वपूर्ण स्थान है। आपके साहित्य में पांडित्य की तुलना में बोधगयं अधिक मिलती है आपने हिंदी साहित्य को समृध्द बनाने के साथ ही साथ उसे व्यावहारिक भी बनाया।  साहित्य सेवाओं के लिए हिंदी साहित्य आपका हमेशा ऋणी रहेगा।

Enjoyed this article? Stay informed by joining our newsletter!

Comments

You must be logged in to post a comment.

About Author