किसी चालक में विधुत आवेश के प्रवाह की दर विधुत धारा है। जैसे - किसी चालक में 1 सेकंड में जितना आवेश प्रवाहित हो रहा है, उस प्रवाहित आवेश की मात्रा ही विधुत धारा है।
विधुत धारा = कुल आवेश / कुल समय Q/t
आवेश का मात्रक कुलाम होने के कारण यदि समय को सेकंड में ले, तो विधुत धारा का मात्रक -
एम्पीयर = कुलाम /सैकंड
उदाहरण : यदि किसी विधुत परिपथ में उपस्थित बल्ब में ५ सेकंड में 15 कुलाम आवेश प्रवाहित होता है तो उसमे कितनी विधुत धारा प्रवाहित हो रही है ?
I = Q/T =15/5 = 2 एम्पीयर
विधुत धरा का मापन एमीटर उपकरण से करते है। विधुत धारा मुख्य रूप से निम्न स्त्रोतों से प्राप्त होती है -
(A) शुष्क सैल सीसा संचायक, निकल केडमियम क्षारीय प्राथमिक सेल, लौह निकल संचायक सैल।
(B) डायनमो जनरेटर
(1) शुष्क सैल :
- यह एक प्रकार का प्राथमिक सैल है। जिससे रासायनिक ऊर्जा, विधुत ऊर्जा में बदली जा सकती है किन्तु विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में नहीं बदला जा सकता है।
- आकार : बेलनाकार
- आंतरिक आवरण : जस्ते का
- जस्ते का आवरण ऋणाग्र का कार्य करता है इसका मुख्य कारण इलेक्ट्रॉनों की अधिकता होना है।
- ऊपरी भाग में लगी पीतल की टोपी कार्बन की छड़ पर लगी होती है, इस छड़ पर इलेक्ट्रॉनों की कमी होने के कारण यह छड़ धनाग्र का कार्य करती है।
- सेल के जस्ते के आवरण में अमोनियम क्लोराइड (NH4CL) का पेस्ट भरा होता है।
- सैल के मध्य में मैंगनीज दे ऑक्साइड व कार्बन चूर्ण भरा रहता है।
- इसका विधुत वाहक बल 1.5 वोल्ट होता है व इसे 0.25 एम्पीयर धारा ली जा सकती है।
(2) सीसा संचायक सैल:-
आविष्कारक :- गेस्टन प्लानेट (1859-फ्रेंच)
इसे द्वितीयक सैल कहा जाता है। इससे विधुत ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में व रासायनिक ऊर्जा को विधुत में परिवर्तित कर सकते है।
इस सेल के प्लास्टिक के पात्र में स्थित सीसे की जालीनुमा पट्टियों पर लेड-मोनो-ऑक्साइड तथा लिथार्ज का लेप चढ़ा रहता है।
सल्फ्यूरिक एसिड लिथर्ज से क्रिया कर लेड सल्फेट बनाता है।
चार्जर से विधुत धारा प्रवाहित करने पर इन दोनों पट्टियों में से एक पर लेड दाई ऑक्साइड (PbO2)(+) व दूसरी पर स्पेज़ी लेड Pb)(-) बनाता है।
दो या दो से ज्यादा स्ािल को जोड़ना संयोजक बैटरी है।
इस सैल का प्रमुख उपयोग वाहनों की हैडलाइट को प्रकाशित करने में रेल में डिब्बों में बल्व जलाने में, पनडुब्बी में गाड़ी के इंजन को चालू करने में किया जाता है। सीसा संचायक सेल का अपघटक तनु गंधक अम्ल है।
(3) डायनमो/जनरेटर : आविष्कारक- माइकल फैराडे यह चुंबकीय प्रेरण सिद्धांत पर आधारित है।
यह चुंबकीय प्रेरण सिद्धांत पर आधारित है
इसमें चुंबक के धुर्वो (N व S) में मध्य कुण्डली को घुमाने पर विधुत धारा उत्पन्न होती है।
विधुत धारा के प्रकार :
(1) D.C. (Direct Current) जब विधुत धारा की दिशा समय के साथ अपरिवर्तित हो, तो उसे दिष्ट धारा कहते है।
(2) A.C. (Alternating Current) जब विधुत धारा की दिशा समय के साथ परिवर्तित होती है तो उसे प्रत्यावर्ती धारा कहते है।
चालक : जिन पदार्थो में विधुत धारा प्रवाहित होती है।
- कुचालक (विधूतरोधी) : विधुत का प्रवाह नहीं होता है
- अर्ध्द चालक : वे समस्त पदार्थ जो की बहुत कम ताप पर कुचालक होते है व अधिकताप पर चालक की भांति व्यवहार करते है, अर्द्ध चालक कहलाते है।
- अर्द्धचालकों में अशुध्दि मिलाने पर इनकी चलाकता बढ़ा सकते है।
- हमारा शरीर विधुत का चालक होता है। इसी कारण विधुत के झटके से बचाव हेतु तारो पर विधूतरोधी पदार्थी का लेप चढ़ा रहता है चवै बिजली के स्विच रेग्युलेटर आदि बेकलाइट/प्लास्टीक के बनाये जाते है।
- शुध्द पानी विधुत का कुचालक होता है। इसलिए इसे चालक बनाने के लिए इसमें अम्ल, क्षार व लवण की मात्रा मिलाते है।
- चालक पदार्थो में मुक्त इलेक्टॉन पाए जाने के कारण ही इनमे विधुत धारा प्रवाहित है।
- विधुत परिपथ : विधुत धारा प्रवाहित होने वाले मार्ग को विधुत परिपथ कहा जाता है।
एमीटर : यह परिपथ में प्रवाहित धारा के मान को ज्ञात करता है। यह परिपथ में श्रेणीक्रम में लगाया जाता है।
वोल्ट्मीटर : यह परिपथ में दो बिन्दुओ के बीच के विभान्तर को ज्ञात करता है। यह प्रतिरोधी तार में समानांतर कर्म में लगाया जाता है।
ओम का नियम :- V = IR
यदि किसी चालक तार की समस्त भौतिक अवस्थाए स्थिर रहती है, तो इसके सिरों पर उतपन्न विभवांतर उसमें प्रवाहित विधुत धारा के समानुपाती होता है।
R एक स्थिरांक है, जो चालक का प्रतिरोध है।
प्रतिरोध (R) = V (वोल्ट) / I (एम्पीयर)= ओम
उदाहरण - यदि किसी चालक में 1.5 ऐम्पियर विधुत धारा प्रवाहित की जाए तो उसके सिरों पर विभान्तर का मान 4.5 वाल्ट आता है। चालक का प्रतिरोध कितना होगा ?
हल -ओम के नियम के अनुसार V =IR
- R = V/I = 4.5/1.5 = 3 ओम
- बाह्य कक्ष के इलेक्ट्रॉनों के नाभिक के कम बल द्वारा बधे होने के कारण ये इलेक्ट्रॉन, चालक में मुक्त रूप से अनियमित गति करते हैमुक्त इलेक्ट्रॉन कहलाते है।
- प्रतिरोध : चालक को बैटरी से जोड़ने पर उसके इलेक्ट्रॉनों पर विधुत बल लगने के कारण मुक्त इलेक्ट्रोन की गति के प्रवाह मार्ग में उत्पन्न बाधा, प्रतिरोध कहलाती है।
- किसी भी पदार्थ की चालकता का निर्धारण उसके इकाई आयतन में उपस्थिति मुक्त इलेक्ट्रोन की संख्या से करते है। प्रतिरोध सदैव चालकता के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
- प्रतिरोध का श्रेणीक्रम संयोजन : इस क्रम में संयोजित प्रतिरोध तारो का तुल्य प्रतिरोध उनके कुल प्रतिरोध के योग के बराबर होता है।
R = R1 +R2 +R3
समानांतर क्रम में प्रतिरोधों के तुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम अलग -अलग प्रतिरोधों के व्युत्क्रम के योग के बराबर होता है।
1/R = 1/R1+ 1/R2 + .........1/Rn
- विभान्तर :- यह एक कुलाम आवेश को विधुत क्षेत्र में एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया गया कार्य है, जो की उन बिन्दुओ के मध्य में स्थित होता है।
- विधुत धारिता (C) = Q (चालक को दिया गया आवेश)/V (चालक के विभव में होने वाली वृध्दि )
- ट्रांसफार्मर का प्रयोग प्रत्यावर्ती वोलटता के मान में परिवर्तन के लिए किया जाता है।
विधुत का दैनिक जीवन में उपयोग
- घंटी में विधुत संयोजन समांतर क्रम में लगाया जाता है।
- घरों में सप्लाई होने वाली विधुत, प्रत्यावर्ती रूप में होती है इसकी वोल्टता 220 वाल्ट व आवृत्ति 50 हर्ट्ज होती है।
शक्क्ति (P) = धारा (I)X विभान्तर (V)
1 वॉट = 1 ऐम्पियर X वोल्ट
मात्रक :
1 किलोवाट = 1000 वॉट (103 वाट )
1 मेगावाट = 1000000 वाट (106वाट)
1 अश्वशक्ति = 746 वाट
घरों के विधुत खर्च को यूनिट में व्यक्त करते है। इसके मापन की इकाई यूनिट है।
1 यूनिट = 1 किलोवाट घंटा
1 किलोवाट घंटा = 1000 वाट घंटा
1 किलोवाट-घंटा बराबर है = 3.6X 106 जूल
फ्यूज : फ्यूज तार ताँबा, टिन व सीसा धातुओं के मिश्रण से निर्मित होती है।
- परिपथ में लघुकरण होने की स्थिति में धारा के अत्यधिक प्रवाह के कारण फ्यूज उड़ जाता है।
- वर्तमान में फ्यूज के स्थान पर लघु परिपथ विच्छेदक MCB का प्रयोग किया जा रहा है।
- विधुत प्रेस : इसकी नीचे की सतह पर क्रोमियम की पोलिश इसलिए की जाती है की इस पर जंग ना लगे।
- हीटर, प्रेस, विधुत केतली, टोस्टर ओवन आदि युक्तियाँ विद्युतधारा के उष्मीय प्रभाव पर कार्य करती है।
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