जैन और बौद्ध धर्म

जैन और बौद्ध धर्म

जैन धर्म

• जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे। इन्हें इस धर्म का संस्थापक भी माना जाता है।

• जैन धर्म में कुल 24 तीर्थकर हुए। महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। इन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।

• जैन धर्म में कर्मफल से छुटकारा पाने के लिए त्रिरत्न का पालन आवश्यक माना गया है। ये त्रिरत्न हैं- सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् आचरण।

• महावीर ने पाँच महाव्रतों के पालन का उपदेश दिया। ये पाँच महाव्रत हैं- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य। इनमें से शुरू के चार महाव्रत जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के थे, अन्तिम महाव्रत ब्रह्मचर्य महावीर स्वामी ने जोड़ा। जैन धर्म अनीश्वरवादी है।

महावरी स्वामी : परिचय

जन्म- कुण्डग्राम (वैशाली)

जन्म का वर्ष- 540 ई.पू. 

पिता- सिद्धार्थ (ज्ञातृक क्षत्रिय कुल) 

माता- त्रिशला (लिच्छवि शासक चेटक की बहन) 

पत्नी- यशोदा 

गृह त्याग- 30 वर्ष की आयु में 

तपस्थल- जृम्भिक ग्राम (ऋजुपालिका नदी के किनारे) 

कैवल्य- ज्ञान की प्राप्ति 42 वर्ष की अवस्था में

 निर्वाण- 468 ई.पू. (पावापुरी में)

• कालान्तर में जैन धर्म दो सम्प्रदायों श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में बँट गया। श्वेताम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय के अनुयायी वस्त्रों का परित्याग करते हैं।

बौद्ध धर्म

बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे।

गौतम बुद्ध : परिचय

जन्म- लुम्बिनी ग्राम, कपिलवस्तु

जन्म का वर्ष- 563 ई.पू. 

पिता- शुद्धोधन (शाक्य गण के प्रधान) 

माता- महामाया (कोलियगण की राजकुमारी)

पत्नी- यशोधरा 

पुत्र- राहुल 

गृह त्याग - 29 वर्ष की आयु में (महाभिनिष्क्रमण) 

तपस्थल- उरुवेला (निरंजना नदी के किनारे) 

ज्ञान- ज्ञान की प्राप्ति 35 वर्ष की अवस्था में

महापरिनिर्वाण- 483 ई.पू. (कुशीनगर में)

• गौतम बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ (ऋषिपतनम) में दिया।

  • बुद्ध ने सांसारिक दुःखों के बारे में चार आर्य सत्य बताये हैं। ये हैं-दुःख, दुःख समुदय, दुःख विशेष तथा दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा।

• दुःखों से छुटकारा पाने के लिए बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग का उपदेश दिया। ये हैं - सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाक्, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति तथा सम्यक् समाधि।

• प्रतीत्यसमुत्पाद को गौतम बुद्ध की शिक्षाओं का सार कहा जाता है।

• बौद्ध धर्म अनीश्वरवादी तथा अनात्मवादी है।

 • बुद्ध, संघ एवं - ये तीन बौद्ध धर्म के त्रिरत्न हैं।

• जातक कथाओं में गौतम बुद्ध की जीवन सम्बन्धी कहानियाँ हैं।

• बौद्ध ग्रन्थों; सुत्त पिटक, विनय पिटक तथा अभिधम्म पिटक; को सामूहिक रूप से 'त्रिपिटक' कहा गया है। त्रिपिटक की भाषा पालि है।

• महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेश पालि भाषा में दिये।

• कालान्तर, कनिष्क के शासनकाल में बौद्ध धर्म का विभाजन हीनयान तथा महायान दो शाखाओं में हो गया।

• हीनयान शाखा के अनुयायियों ने गौतम बुद्ध के मूल उपदेशों को स्वीकार किया जबकि महायान शाखा के अनुयायियों ने बुद्ध की मूर्ति-पूजा का प्रचलन शुरू किया।

महाजनपदों का उदय

• छठी शताब्दी ई. पू. के आस-पास कृषि में नवीन तकनीक तथा लोहे के प्रयोग के कारण अधिशेष उत्पादन होने लगा। कृषि अधिशेष से व्यापार एवं वाणिज्य को बल मिला, जिससे दूसरी नगरीय क्रान्ति आई। इस कारण उत्तर वैदिक काल के जनपद, महाजनपदों में परिवर्तित हो गए।

• महाजनपदों की कुल संख्या 16 थी, जिसका उल्लेख बौद्ध ग्रन्थ अंगुत्तर निकाय, महावस्तु एवं जैन ग्रन्थ भगवती सूत्र में मिलता है। इसमें मगध, कोमल, वत्स और अवन्ति सर्वाधिक शक्तिशाली थे।

मगध साम्राज्य

• ईसा पूर्व के सोलह महाजनपदों में मगध सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद था।

• प्राचीन भारत में साम्राज्यवाद की शुरूआत या विकास का श्रेय मगध को दिया जाता है।

हर्यक वंश (544 ई.पू.-412 ई.पू.)

• मगध साम्राज्य की महत्ता का वास्तविक संस्थापक बिम्बिसार (544-ई.पू.-492 ई.पू.) था। उसकी राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) थी।

• बिम्बिसार ने वैवाहिक सम्बन्धों के आधार पर अपनी राजनीतिक स्थिति सुदृढ़ की।

• बिम्बिसार ने अपने राजकीय चिकित्सक 'जीवक' को पड़ोसी राज्य अवन्ति के शासक चण्डप्रद्योत महासेन की चिकित्सा के लिए भेजा था।

• बिम्बिसार को उसके पुत्र अजातशत्रु (492 ई.पू.-460 ई.पू.) ने बन्दी बनाकर सत्ता पर कब्जा जमाया। अजातशत्रु को 'कुणिक' के नाम से भी जाना जाता है।

• अजातशत्रु ने वज्जि संघ के लिच्छवियों को पराजित करने के लिए 'रथमूसल' एवं 'महाशिलाकण्टक' नामक नये हथियारों का प्रयोग किया।

• अजातशत्रु के शासनकाल में राजगृह के सप्तपर्णि गुफा में प्रथम बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ था।

• अजातशत्रु का पुत्र उदयिन (उदयभद्र) (460 ई.पू.-444 ई.पू.) हर्यंक वंश का तीसरा महत्त्वपूर्ण शासक था, उसने पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) की स्थापना की तथा उसे अपनी राजधानी बनाया।

शिशुनाग वंश (412 ई.पू.-344 ई.पू.)

• हर्यक के सेनापति ने मगध की सत्ता पर कब्जा कर शिशुनाग वंश की स्थापना की।

• इस वंश के शासक कालाशोक (काकवर्ण) के शासनकाल में मगध की राजधानी वैशाली थी, जहाँ बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ।

नन्द वंश (344 ई.पू.-324 ई.पू.)

• नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनन्द था। उसे सर्वक्षत्रान्तक अर्थात् 'सभी क्षत्रियों का नाश करने वाला' कहा गया है।

• महापद्मनन्द ने एकछत्र राज्य की स्थापना की तथा 'एकराट्' की उपाधि धारण की।

• वंश का अन्तिम शासक धननन्द था। इसी के शासनकाल में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया था।

मौर्य साम्राज्य

• चन्द्रगुप्त मौर्य (322 ई.पू. - 298 ई.पू.) ने चाणक्य की सहायता से नन्द वंश के शासक धननन्द को अपदस्थ कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की।

• सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को अपने राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त के दरबार में भेजा था।

• सेन्ड्रोकोट्स की पहचान चन्द्रगुप्त के रूप में सर्वप्रथम 'विलियम जोन्स' ने की।

• चन्द्रगुप्त मौर्य ने अपने अन्तिम समय में जैन भिक्षु भद्रबाहु से दीक्षा लेकर श्रवणबेलगोला में कायाक्लेश के द्वारा प्राण त्याग दिया।

• बिन्दुसार (298 ई.पू.-272 ई.पू.) को 'अमित्रघात' के नाम से भी जाना जाता है। वह आजीवक सम्प्रदाय का अनुयायी था।

• बिन्दुसार ने सीरिया के शासक एण्टियोकस से अंजीर मदिरा तथा एक दार्शनिक की माँग की थी।

• अशोक (273 ई.पू.- 232 ई.पू.) अपनी प्रजा के नैतिक उत्थान के लिए प्रतिपादित 'धम्म' के लिए विश्व विख्यात है।

• अशोक ने अपने शासन के 8वें वर्ष (261 ई.पू.) में कलिंग पर आक्रमण किया तथा उसे जीत लिया।

• कलिंग के साथ हुए युद्ध में भारी रक्तपात को देख अशोक ने 'युद्ध नीति' को छोड़ 'धम्म नीति' का पालन किया।

• अशोक ने अपने बड़े भाई सुमन के पुत्र 'निग्रोध' से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म को अपनाया। बाद में 'उपगुप्त' ने उसे बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।

• अशोक के धम्म की परिभाषा 'राहुलोवादसुत्त' से ली गई है।

• अशोक के कलिंग युद्ध तथा हृदय परिवर्तन की जानकारी उसके 13वें शिलालेख से मिलती है।

• अशोक ने अपने शासकीय एवं राजकीय आदेशों को शिलालेखों पर खुदवाकर साम्राज्य के विभिन्न भागों में स्थापित किया।

• ये शिलालेख 'ब्राह्मी', 'खरोष्ठी, 'अरामाईक' तथा 'ग्रीक' लिपि में हैं।

• अशोक के शिलालेखों का पता सर्वप्रथम टी. फैन्थेलर ने लगाया तथा इसे पढ़ने में सर्वप्रथम सफलता जेम्स प्रिंसेप को मिली।

• मौर्य साम्राज्य में उच्च स्तर के अधिकारियों को 'तीर्थ' कहा जाता था, जिनकी संख्या 18 बताई गई है।

• कौटिल्य (चाणक्य) के 'अर्थशास्त्र' तथा मेगस्थनीज के 'इण्डिका" से मौर्य साम्राज्य के बारे में विशेष जानकारी मिलती है।

मौयर्योत्तर काल में विदेशी आक्रमण

यवन

मौयर्योत्तर काल में भारत पर सबसे पहला विदेशी आक्रमण बैक्ट्रिया के ग्रीकों ने किया। इन्हें 'हिन्द-यवन' या 'इण्डोग्रीक' के नाम से भी जाना जाता है।

हिन्द-यवन शासकों में मिनाण्डर सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उसकी राजधानी साकल थी।

प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागसेन के साथ मिनाण्डर (मिलिन्द) के द्वारा किये गए वाद-विवाद का विस्तृत वर्णन 'मिलिन्दपन्हो' नामक ग्रन्थ में है।

इण्डो-ग्रीक शासकों ने भारत में सर्वप्रथम 'सोने के सिक्के' तथा 'लेखयुक्त सिक्के' जारी किये।

विभिन्न ग्रहों के नाम, नक्षत्रों के आधार पर भविष्य बताने की कला, सम्वत् तथा सप्ताह के सात दिनों का विभाजन यूनानियों ने भारत को सिखलाया।

शक

• शक मूलतः मध्य एशिया के निवासी थे।

• शक शासकों में रुद्रदामन प्रथम प्रमुख था। जूनागढ़ से प्राप्त उसका अभिलेख संस्कृत भाषा का पहला अभिलेख है।

• रुद्रदामन प्रथम ने चन्द्रगुप्त मौर्य के समय निर्मित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया था।

पहलव (पार्थियन)

• पहलव मूलतः पार्थिया के निवासी थे।

• पहलवों का सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक गोन्दोफर्निस था। उसके शासनकाल में ईसाई धर्म-प्रचारक सेण्ट टॉमस भारत आया था।

कुषाण

• कुषाण यू-ची जनजाति से सम्बन्धित थे। वे पश्चिमी चीन से भारत आये थे।

• कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। कनिष्क ने 78 ई. में शक सम्वत् को प्रचलित किया।

• कनिष्क ने पुरुषपुर (पेशावर) को अपनी राजधानी बनाया। मथुरा कनिष्क की द्वितीय राजधानी थी।

• कश्मीर में कनिष्क ने 'कनिष्कपुर' नामक नगर की स्थापना की।

• कनिष्क बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उसके शासनकाल में चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन कुण्डल वन (कश्मीर) में हुआ था।

गुप्त साम्राज्य

• गुप्त वंश का प्रथम महत्त्वपूर्ण शासक चन्द्रगुप्त प्रथम था, लेकिन इसके पहले श्रीगुप्त (240-285 ई.) तथा घटोत्कच (280-320 ई.) का शासक के रूप में उल्लेख मिलता है।

• चन्द्रगुप्त प्रथम (319-335 ई.) ने 320 ई. में गुप्त सम्वत् की शुरूआत की। उसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी।

• चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए लिच्छवि राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था, जो उस समय की महत्त्वपूर्ण घटना थी।

• समुद्रगुप्त (335-375 ई.) चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र था। विभिन्न अभियानों के कारण इतिहासकार वी.ए. स्मिथ ने उसे 'भारत का नेपोलियन' कहा है।

• समुद्रगुप्त की विजयों और उसके बारे में जानकारी के स्रोत उसके दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति या इलाहाबाद स्तम्भ अभिलेख है।

• समुद्रगुप्त की अनुमति से सिंहल (श्रीलंका) के राजा मेघवर्मन ने बोधगया में एक बौद्ध मठ स्थापित किया था।

• समुद्रगुप्त के सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है।

• चन्द्रगुप्त द्वितीय (375-415 ई.) का काल गुप्तकाल में साहित्य और कला का स्वर्ण-काल कहा जाता है।

• चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर 'विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की तथा चाँदी के सिक्के चलाये।

• चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में चीनी यात्री फाह्यान (399-412 ई.) भारत आया था।

• उसके दरबार में नौ विद्वानों की मण्डली थी जिसे 'नवरत्न' कहा जाता था। इस नवरत्न में कालिदास अमर सिंह आदि शामिल थे।

• कुमार गुप्त प्रथम (415-455 ई.) के समय में नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी।

• स्कन्दगुप्त (455-467 ई.) गुप्त वंश का अन्तिम प्रतापी शासक था। उसने हूणों के आक्रमण को विफल किया था।

• स्कन्दगुप्त ने भी चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा के समय निर्मित सुदर्शन झील का पुनरुद्धार करवाया था।

• गुप्तकालीन प्रशासन की सबसे छोटी इकाई 'ग्राम' थी, जिसका प्रशासन ग्रामिक के हाथ में होता था।

• कई गाँवों को मिलाकर पेठ बनते थे।

• भारत में मन्दिरों का निर्माण गुप्तकाल से शुरू हुआ। देवगढ़ का दशावतार मन्दिर गुप्तकाल का सबसे उत्कृष्ट मन्दिर है।

• गुप्तकालीन बौद्ध गुफा मन्दिरों में अजन्ता एवं बाघ की गुफाएँ प्रमुख हैं।

• गुप्त शासकों की राजकीय या आधिकारिक भाषा संस्कृत थी।

• गुप्तकाल में 'भाग' एवं 'भोग' राजस्व कर था, 'भाग' उपज का छठा हिस्सा होता था जबकि भोग सब्जी तथा फलों के रूप में दी जाती थी।

पुष्यभूति वंश

• पुष्यभूति वंश की स्थापना थानेश्वर में हुई थी। इस वंश का पहला

महत्त्वपूर्ण शासक प्रभाकरवर्द्धन था।

• हर्षवर्द्धन (606-647 ई.) इस वंश का महान् शासक था। उसने अपनी राजधानी थानेश्वर से कन्नौज स्थानान्तरित की।

• बाणभट्ट हर्ष का दरबारी कवि था। उसने 'हर्षचरित' की रचना की। हर्ष ने स्वयं 'नागानन्द', 'रत्नावली' एवं 'प्रियदर्शिका' नामक नाटकों की रचना की थी।

• हर्ष का चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय से नर्मदा नदी तट पर युद्ध हुआ था, जिसमें हर्ष की पराजय हुई थी।

• हर्षवर्द्धन के शासनकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया था।

• उसका यात्रा-वृत्तांत 'सी-यू-की' के नाम से जाना जाता है।

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