जीवन परिचय -
स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री भीमराव आंबेडकर का जन्म १४ अप्रैल, 1891 में मध्य प्रदेश में स्थित महुनगर, सैन्य छावनी में हुआ। आपके पिता का नाम रामजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था। प्यार से आपको भीमा नाम से पुकारा जाता तह आपसे स्नेह करने वाले एक ब्राह्यण अध्यापक के कहने पर आपने अपने नाम के साथ आंबेडकर जोड़ दिया। अपने 1907 में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। जिन्होंने बॉम्बेके प्रतिष्ठत एल्फिस्टर स्कूल से बी. ए. किया। इसी समय 9 वर्षीय रमाबाई से आपका विवाह हुआ। बड़ौदा राज्य से छत्रवृत्ति मिलने पर न्यूयार्क में कोलम्बिया विश्वविधालय से पी-एच. डी. शिक्षा। चार साल लन्दन में वकालत की पढ़ाई की। 1924 में भारत लौटने पर जाती- प्रथा के विरोध में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की तथा कहा-छुआछूत गुलामी से बदतर है।
भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के आप अध्यक्ष बने। साथ ही, आप भारत के प्रथम कानून मंत्री बने। 1956 में 5 लाख अनुयायियों के साथ आप बौद्ध मतानुयायी बन गए। 6 दिसम्बर, 1956 को आंबेडकर जी की मृत्यु हो गई।
आपको इन प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित किया गया -बोधिसत्व ; भाररत्न पहले कोलंबियन अहैड़ ऑफ़ देअर टाइम ; डी ग्रेट इंडियन।; कोलम्बियाना विश्वविधालय ने L.L.D. की मानद उपाधि दी ;उस्मानिया विश्वविधालय ने डी. लिट. की मानद उपाधि दी।
रचनाएँ-
(1) पुस्तकें व भाषण - द कास्ट्र्स इन इंडिया, देयर मेकेनिज्म जेनेसिस एंड डेवलपमेंट, डा अनटचेबल्स, हु आर दे ? हू आर द शूद्राज, बुद्ध एवं हिज धम्म, थाटर्स ऑन लिंग्युस्टिक स्टेटर्स, द प्रॉब्लम ऑफ़ द रुपी, द एबोलुशन ऑफ़ प्रोविंशियल फायनांस इन ब्रिटिश इंडिया।
(2) पत्रिकाए - मूकनायक, बहिष्कृत भारत, समता, जनता और प्रबुद्ध भारत, नामक पांच पत्रिकाओं का सम्पादन किया।
भाषा -
हिंदी- अंग्रेजी दोनों ही भाषाओ में आपने लेखन कार्य किया। मूलतः साहित्यकार न होने के कारण भाषा साधारण बोलचाल की खंडी बोली रही। आपने मुहावरों कहवतो का प्रयोग भाशा को व्यावहारिक बनाने के लिए किया। समग्र रूप में आपके द्वारा सृजित साहित्य की भाषा बोधगम्य।
शैली -
आपकी शैली के निम्न रूप है -
(1) व्याख्यात्मक शैली
(2) व्यंग्यात्मक शैली
(3) भावात्मक शैली।
(4) विवेचनात्मक शैली
साहित्य में स्थान
भारतीय संविधान के पिता डॉ. भीमराव आंबेडकर की पहचान न्यायवादी, समाज सुधारक और प्रखर राजनेता के रूप में होती है। अस्पृश्यता, जातिगत प्रतिबंधों, पिछड़े वर्ग के बीच फैली अशिक्षा व् गरीबी को लेखो के द्वारा दूर करने भरसक प्रयास किया। साहित्कार न होते हुए भी आपने अपने निबंधों, भाषाओ व पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी बात जनता के सामने रकहि। आपके सम्मान में 14 अप्रैल को प्रतिवर्ष आंबेडकर जयंती के रूप में आपका जन्मदिन मनाया जाता है। इस सचेत नागरिक , कुशलवक्त, सुदही सम्पादक, निष्पक्ष पत्रकार और अद्वितीय प्रतिभाशाली निबंधकार का हिंदी साहित्य सदैव ऋणी रहेगा।
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