सायनोबैक्टीरिया या नीली हरी शैवाल की संरचना

सायनोबैक्टीरिया या नीली हरी शैवाल 

सायनोबैक्टीरिया या नीली हरी शैवाल सायनोफेसी या मिक्सोफेसी या मिक्सो नीली-हरी शैवाल का नाम जीवाणु के नामकरण की अंतर्राष्ट्रीय संहिता के नियमों के आधार पर 1978 में सायनोजीवाणु नाम रखा गया। ये ग्राम ऋणात्मक प्रोकैरियोट होते है।

इनकी कोशिकाओं में केन्द्रक, केन्द्रक झिल्ली रहित क्रोमैटिन पदार्थ पाया जाता है। संचित खाद्य पदार्थ सायनोफाइसियन होता है। कोशका के जीवद्रव्य का बाहरी भाग क्रोमोप्लाज्मा होता है तथा केन्द्रिक रंगहीन भाग सेंटरोप्लाज्मा होता है।

ये एककोशिकीय (क्रोकोकस ), कोलोनीय (गलिओकाईप्सा) या तंतुल (ओसिलाइटोरिया) रूपों में मिलते है कोलोनी जिलेटिन  होते हैं. ट्राइकोम अशाखित होते है। कशाभिकाओं का अभाव होता है, परन्तु फिर भी इनमे विसर्पी तथा दोलन गति पाई जाती है।

कोशिका भित्ति बाहर से श्लेष्मि आवरण से ढकी कोशिका भित्ति दो परतों में विभेदित; जैसे बाहरी परत संवलित तथा अन्दरी परत में म्यूकोपेप्टाइड व मयूरामिक अम्ल पाया जाता है। जीवद्रव्य में कोशिकाओं व रिक्तिकाओं का अभाव, इनमे प्रमुख वर्णक पर्णहरित -a पर्णहरित फाइकोसायनिन व पर्णहरित फाइकोसायनिन व पर्णहरित फैकोइरीथ्रिन होते है। वर्णक जीवद्रव्य के परिधि में रहते है गैसे रिक्तिकाएँ उत्प्लावकता प्रदान करती है। 

केंद्र के सेंटरोप्लाज्मा में न्यूक्लिक अम्ल (DNA, RNA) होता है, परन्तु केन्द्रक झिल्ली, केन्द्रकद्रव्य, कंडिका, हिस्टोन प्रोटीन्स व् गुणसूत्रों का अभाव होता है। आपतित प्रकाश के अनुरूप ये रंग बदलते हैं, इसे गेडूकोव प्रभाव कहते है। 

जनन केवल कायिक तथा अलैंगिक विधियों से होता है, लैंगिक जनन, जननांगो युग्मको का अभाव होता है। कायिक जनन कोशिका विभाजन, खण्डन व् होमरोगोनिया द्वारा होता है।  अलैंगिक जनन निश्चेष्ट बीजाणुओं अंत: बीजाणुओं बाह्रा बीजाणुओं, हेटेरोसिस्ट द्वारा होता है।

सायनोबैक्टीरिया N2 स्थिरीकरण हेतु उपयोगी, ुसार भूमि को उपजाऊ बनाने, तालाबों से मच्छरों के उन्मूलन (एनाबीना एलोसिरा) जातियाँ, प्रतिजैविक (लिजबिया स्पिरुलिना से प्रोटीन प्रचुर (71%) प्राणी भोजन प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण है। कुछ जातियों जलाशयों में विषाक्त पदार्थ स्त्रावित करती है। 

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