जीवन परिचय -
छायावादी युग के चार प्रमुख स्तम्भों में से एक एवं आधुनिक युग की मीरा के नाम से विख्यात महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद , उत्तर प्रदेश में हुआ था। आपके पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा प्राध्यापक थे। माता हेमारानी देवी धर्मपरायण कर्मनिष्ठ भावुक व शाकाहारी महिला थी।
भाषा - जैनेन्द्र जी की भाषा के दो रूप देखने को मिलते है। पहला रूप उपन्यासों और कहानियों में देखने को मिलता है जो सरल व् सहज है। दूसरा रूप देखने को मिलता है, जिनमे विचार और चिंतन की प्रधानता के कारण भाषा में गंभीरता विषयो में भाषा गम्भीर और दुरूहता आ गई है आपकी भाषा विषय के अनुरूप बदलती है रहती है। गंभीर विषयो में भाषा गंभीर वाक्य छोटे होते है अन्य भाषाओ, जैसे - अरबी फ़ारसी, उर्दू, संस्कृत व् अंग्रेजी के शब्दों का भी प्रयोग भी हुआ। आपने भावो को प्रकट करने तथ चमत्कार उतपन्न करने के लिए मुहावरों व् कहावतों का भी प्रयोग किया है।
शैली - गंभीर चिंतन मनोवैज्ञानिक विश्लेषण व् मानवतावादी दृष्टिकोण होने के कारण जैनेन्द्र जी की शैली के कई रूप मिलते है।
(1) मनोविश्लेषणात्मक - इस शैली में कहानी व उपन्यासों के पात्रो के अंतर्मन एवं बाह्य मन की झाँकी देखने को मिलती है। आपकी कहानियो में मानसिक परिवेश की प्रधानता है।
(2) विचार प्रधान विवेचनात्मक शैली - जैनेन्द्र जी के निबंधों में प्रायः विचारात्मक शैली प्रयोग हुआ है जिसमे भावो की गंभीरता तथ विचारो की बहुलता है।
(3) वर्णनात्मक शैली - कथा में जीवन्तता लाने के लिए आपने इस शैली का प्रयोग किया। इसी प्रकार, घटना व् पात्रो के चरित्र की प्रस्तुति के लिए एक शैली का प्रयोग किया। इसी प्रकार, घटना व् पात्रो के चरित्र की प्रस्तुति के इस शैली को अपनाया जिसमे वाक्य छोटे व शब्द चयन सरल है।
(4) भावात्मक शैली - जैनेन्द्र जी की कहानियों में मानव मन के रहस्यों का उदृघाटन, हुआ है क्योकि व्यक्तिवादी कथाकार होने कारण सामाजिक परिवेश के स्थान पर मानसिक परिवेश को प्रधनता मिली है जिससे आपकी शैली भावात्मक हो उठती है।
साहित्य में स्थान -
श्रेष्ट उपन्यासकार, कहानीकार एवं निबंधकार जैनेन्द्र कुमार अपनी चिन्तन विचारधारा, आध्यात्मिक और विश्लेषणों सदा स्मरणीय रहेंगे। मानव मन के सूक्ष्म चितेरे, बेबाक लेखन कला तथा भाषा को पारदर्शिता प्रदान करने वाले के रूप में आपको हिंदी साहित्य में सदैव एक विशिष्ट स्थान प्राप्त रहेगा।
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