छायावाद की प्रमुख प्रवत्तियाँ एवं रचनाएँ

हिंदी कविता में आधुनिता तथा नवीन युग के सूत्रपात का श्रेय छायावादी युग को प्रदान किया जाता है।

हिंदी साहित्य में छायावाद द्विवेदीयुगीन काव्य प्रवृति की प्रतिक्रिया की उपज है आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, "छायावाद शब्द का प्रयोग दो अर्थ्रो में है- एक तो कवि उस अनंत अज्ञात प्रियतम को आलंबन बनाकर चित्रमयी भाषा में प्रेम के अनेक प्रकार की व्यंजना करता है।  दूसरा प्रयोग काव्य- शैली या पद्द्ति- विशेष के व्यापक अर्थ में है। ''

डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार, "परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में, यही छायावाद है। "

डॉ. नगेन्द्र ने छायावाद को "स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह" माना है। 

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी के अनुसार, "मानस अथवा प्रकृति के सूक्ष्म किन्तु व्यक्त सौंदर्य में आध्यात्मिक छाया का भाव ही छायावाद है। "

छायावाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ 

छायावादी काव्य में पायी जाने वाली प्रवृत्तियों को हम मुख्यतः तीन वर्गो में विभक्त कर सकते है - (क) विषयगत, (ख) विचारगत और (ग) शैलीगत।

(क) विषयगत प्रवृत्तियाँ 

इसके अंतर्गत तीन प्रकार की अभिव्यंजना है -(1) नारी सौंदर्य और प्रेम-चित्रण, (2) प्रकृति- सौंदर्य और प्रेम-व्यंजना तथा (3) अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद ।

(1) नारी सौंदर्य और प्रेम- चित्रण 

(2) प्रकृति -सौंदर्य और प्रेम- व्यंजना 

(3) अलौकिक प्रेम या रहस्यवाद

(ख) विचारगत प्रवृत्तियाँ 

छायावाद की विचारगत प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित है -

(1) दर्शन की क्षेत्र में ाड़वसितवाद एवं सर्वात्मवाद।

(2) धर्म के क्षेत्र में अदेवत्वाद एवं सर्वात्मवाद।

(3) समाज के क्षेत्र में समन्वयवाद।

(4) राजनीती के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय रवम विश्व- शांति का समर्थन।

(5) पारिवारिक एवं दाम्पत्य जीवन के क्षेत्र में ह्रदयतत्व की प्रधानता।

(6) साहित्य के क्षेत्र में व्यापक कलावाद या सौंदर्यवाद 

( ग) शैलीगत प्रवत्तियाँ

छायावदी शैली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है -

(1) मुक्तक गीत शैली।

(2) प्रतीकात्मकता।

(3) प्राचीन एवं नवीन अलंकारों का प्रचुर मात्रा में सफल प्रयोग।

(4) कोमलकांत संस्कृतनिष्ठ पदावली।

(5) गीति शैली के सभी प्रमुख तत्व-वैयक्तिकता, भावनात्मकता, संगीतात्मकता, संक्षित्ता और कोमलता।

छायावाद की प्रमुख कवि एवं उनकी प्रमुख रचनाये

(1) जयशंकर प्रसाद - प्रसाद ने प्रारम्भ में ब्रजभाषा में कविताएँ लिखी।  1913 में वे खड़ी बोली में कविता करने लगे।  उनके प्रमुख काव्य गर्थ है।  'प्रेम पथिक', 'करूणालय', 'महाराणा का महत्त्व', कानन कुसुम ', 'झरना',  'आंसू', ' लहर और कामायनी'. कामायनी', उनकी अंतिम काव्य रचना है यह मकाव्य है। 'प्रेम पथिक' ,'लघु स्फूट काव्य है।

(2) सुमित्रनंदन पन्त- पल्ल्व, ग्रंथि, गुंजन, वीणा, उच्छवास।

(3) सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला- परिमल, एनिमा, अनामिका, तुलसी।

(4) महादेवी वर्मा- रश्मि नीरजा, नीहार, सांध्यगीत।

(5) रामकुमार वर्मा- निशील, चित्र-रेखा, आकाशगंगा।

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