फैसिओला हिपेटिका का आरेख

सामान्यतया इसे भेड़ का यकृत कृमि कहा जाता है। यह द्विपरपोषी परजीवी है फैशिओला जाइजेण्टिका या फैशिओला इण्डिका गाय, भैस आदि में पाया जाता है। फैशिओला बस्की मनुष्य की आंत्र में पाया जाता है।

फैसिओला हिपेटिका (Fasciola Hepatica)

यकृत कृमि यकृत की पित्त नलिकाओं तथा कोशिकाओं में अपने अग्र अधर चूषक द्वारा चिपका रहता है। एक भेड़ में 200 तक पर्णकृमि पाए जा सकते है।  मुख अग्र चूषक के बीच में स्थित होता है। गुदा अनुपस्थित यकृत पर्णकृमि उभयलिंगी होता है किन्तु इसमें पर- निषेचन होता है अंडाशय तथा पीतकी ग्रंथियाँ अलग-अगल होती है लॉरर की नलिका एक अस्थाई छिद्र द्वारा जनन काल में बाहर खुलती है जिसमे मिथुन के समय नर का सिरस प्रवेश करता है निषेचन के पश्चात पोषक की पित्त नलिका में अंडे दिए जाते है, जो आंत्र से होते हुए मॉल के साथ बाहर आ जाते है। परिवर्धन नम भूमि में होता है।

अंडे से मीरासीडियम लारवा बनता है, जो पानी में अंडे से बाहर निकल कर घोंघे के शरीर में प्रवेश करता है यदि 24 घण्टों के भीतर मीरसिडियम घोंघे के शरीर में प्रवेश करता है।  इससे स्पोरोसिस्ट लारवा बनता है जिससे 5 से 8 तक रेडिया लारवा की  दो पीढ़ियाँ बनती है।  प्रत्येक रेडिया लारवा में स्थित जनन कोशिकाएँ 14 से 20 सरकेरिया लारवा बनाती है।  सरकेरिया लारवा घोंघे के शरीर से बाहर निकल कर जलीय  पुती बनाते है जिनके भीतर अलग लारवा मेटासरकेरिया उसकी आंत्र में पहुंच जाते है जहाँ इसकी पुटी भित्ति धुल जाती है सरकेरिया पित्त वाहिनी के द्वारा यकृत में पहुँच कर वयस्क कृमि में बदल जाता है।  यह भेड़ , फैसिओलिएसिस या यकृत सड़न रूधिर की कमी तथा जबड़ो की सूजन उतपन्न करता है।

  1. द्वितीय पोषक अर्थात घोंघे के लिए संक्रमणकारी अवस्था मीरासिडियम लारवा है। यह घोंघे के शरीर में छेड़ करके प्रवेश करता है।
  2. प्रथम पोषक अर्थात भेड़ के लिए संक्रमण अवस्था मेटासरकेरिया को खा लेती है जिससे संक्रमण हो जाता है।
  3. फैसिओला हिपेटिका की स्वतंत्र जीवी अवस्था मीरसिडियम लारवा है।

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