मेंडल के स्वत्रंतत्र अपव्यूहन का नियम

 मेंडल  के स्वत्रंतत्र अपव्यूहन का नियम -

मेंडल की सफलता का कारण यह था कि उन्होंने पौधों की वंशागति का समग्रता में अध्ययन न करके एक समय में पहले एक विपरीत लक्षण की जोड़ी का अध्ययन करके संततियों में उसका अनुपात का आँकड़ा तैयार किया। ऐसा उन्होंने सात जोड़ी लक्षणों के लिए किया। इससे उन्हें प्रभविता के नियम तथा वियोजन का नियम प्रतिपादन करने में सफलता मिलती है। फिर उन्होंने संकर प्रयोग में दो विपरीतार्थ लक्षण वाले गुणों की वंशागति का एक साथ विश्लेषण किया। उन्होंने यह पता करने की कोशिका की क्या दो विपरीतार्थलक्षण वाले गुणों की वंशागति का आपस में कोई संबध अर्थः एक गुण का दूसरा पर कोई प्रभाव है। या नहीं। मेंडल के स्वंत्र अपव्यूहन सिध्दांत को समझने के लिए  द्विसंकर क्रॉस का F2 फिनोटाइप अनुपात का तुलनात्मक अध्ययन आवश्यक है।

द्विपद गुणन - 

 द्विसंकर क्रॉस का F2फीनोटाइप ओर कुछ नहीं बल्कि दो एकल संकर क्रोसो का दुपद गुणन है तथा द्विसंकर
क्रॉस में दोनों एकल संकर अनुपात विध्यमान होते है। इस प्रकारद्विसंकर क्रॉस में भी दोनों एकल क्रॉस अप्रभवित होते रहते है
प्रायकिता का सिध्दांत - 

यदि दो घटनाओं के एक साथ आने की प्रायकिता उनके अलग -अलग होने की प्रायिकताओ का गुणन हो तो वे दोनो घटनाये एक दूसरे से स्वतंत्र होती है। उपरोक्त तालिका में हम पाते है। की द्विसंकर क्रॉस F2 पीढ़ी में गोल -पीली साथ - साथ आने की प्रायिकता 9/16 है। जो गोल की एकल संकर में प्रायिकता 3/4 एवं पीले की एकल संकर में प्रायिकता 3 /4 का गुणन फल है। अतः गोल एवं पीले लक्षण स्वत्रंतत्र अपव्यूहन वंशानुगत होते है इस प्रकार मेंडल का स्वत्रंतत्र अपव्यूहन का सिद्धान्त सही है। 

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