पादप प्रजनन विज्ञानं की वह शाखा है, जिसके अंतर्गत वास्तविक जाती के पौधों के अनुवांशिक लक्षणों में सुधार कर उन्नत किस्म की नयी जातियों का विकास किया जाता है।
पादप प्रजनन के उपयोग से 1960 के दशक में कृषि वैज्ञानिक विश्व में हरित क्रांति लाने में सफल हो सके। डॉ. एन ई बॉरलॉग (Dr. NE Borlaug) को विश्व में हरित क्रांति का जनक कहा जाता है।
एन आई वेविलोव ने फसली पौधों की उतपत्ति के आठ केंद्र चीन, भारत, सेंट्रल अमेरिका एवं दक्षिणी अमेरिका प्रतिपादित किये।
पादप प्रजनन के उद्देश्य (Objectives of plant breeding)
(I) वाली फसलों से अधिक उपज वाली किस्मों का विकास करना।
(II) फसल को उपज के साथ साथ उसकी गुणता में भी सुधार करना।
(III) ऐसी किस्म निकालना जो सभी तरह से उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं की अधिक से अधिक आवश्यकताओ की पूर्ती कर सके।
(IV) शीघ्र पकने वाली किस्मो का विकास करना।
(V) रोग व् कीटों से फसल की हानि को बचाने के लिए रोधी किस्मो का विकास करना।
(VI) किसी फसल को नए एवं भिन्न जलवायु वाले क्षेत्रो में उगाने के लिए प्रकाश असंवेदी किस्मो का विकास करना।
(VII) कुछ फसलों ; जैसे मूंग, जौ, गेहूँ में थोड़ी प्रसुप्ति वाली किस्मो का विकास करना।
(VIII) कुछ फसलों, जैसे - मूंग, जौ, गेहूँ में थोड़ी प्रसुप्ति वाली किस्मो का विकास करना।
(lx) लवणीय एवं सूखे क्षेत्रो के लिए सूखा तथा लवण सहिष्णुता वाली किस्मो का विकास करना।
(x) कुछ फसलों में अविषालु पदार्थो जैसे - खेसरी दाल में उपस्थित न्यूरोटोक्सिन, बीटा एन ऑक्जेलिल एमीन एलानीन तथा सरसो में उपस्थित हानिकारक एरूसिक एसिड से मुक्त किस्मो का विकास करना।
फसलों में प्रजजन की विधिया
1. स्व परागित
- प्रवेशन
- वरण
- पुंज चयन
- विशुध्द वंशाक्रम वरण
2. परपरागित
- प्रसंकरण
- वरण
(a) पूंजी चयन
(b) संतति वरण एवं वंशक्रम प्रजनन
(c) प्रत्यावर्ती वरण
- प्रसंकरण
(a) संकर किस्मे
(b) संश्लिष्ट किस्मे
3. वनस्पति प्रवर्धित फसलों में प्रजनन की विधियाँ
(I) प्रवेशन
(II) वरन
(III) कृतन वरन
इन तीन विधियों के अलावा दो और नई विधियाँ अपनाई गई है जो निम्न है।
(I) उत्परिवर्तन
(II) बहुगुणिता
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