संघ मोलस्क के प्रमुख लक्षण और वर्गीकरण उदाहरण सहित

मिलस्का शब्द का प्रयोग सबसे पहले जॉन्स्टन ने 1650 में किया था। मोलस्का जन्तुओ के अध्ययन को मेलेकोलॉजी (malacology) कहते है। मोलस्का के कवच (shell) के अध्ययन को शंख विज्ञान या कॉनकोलोजी कहते है।

प्रमुख लक्षण (Imortant Chracters)

मोलस्का संघ के जन्तुओ में देहगुहा रूधिर प्रगुहा (haemocoel) होती है। इसमें श्वसन वर्णक हीमोसायनिन होता है और श्वसन क्लोम या टीनीडिया या फेफड़ो द्वारा होता है 

शरीर अखण्डित त्रिस्तरीय होता है तथा मुखगुहा में चबाने वाला अंग रेडूला होता है इनमे उत्सर्जन एक जोड़ी वृक्क या मेटानेफरीडिया के द्वारा होता है। इस संघ  जन्तुओ में वैलिंजर ग्लोचिडियम तथा ट्रोकोफोर नामक लारवा अवस्थाएँ पाई जाती है।  मोलस्का में मेण्टल के द्वारा एक कठोर कैलकेरस खोल स्त्रावित होता है कुछ मोलस्को में विमोटन या टॉरशन होता है (शरीर 180० पर घूम जाता है ) .

मिलस्का में रूधिर परिवहन तंत्र का कुछ भाग बंद तथा कुछ खुला होता है। मिलस्का संघ के जन्तुओ में तंत्रिका तंत्र जोड़ो में लगी गुच्छिकाओं, संयोजकों तथा तंत्रिकाओं का बना होता है संवेदी अंग नेत्र संतुलन पुटी स्पर्शक और कुछ में आफ्रेडियम पाया जाता है। इनमे लिंग प्रायः पृथक होते है, परन्तु कुछ उभयलिंगी भी होते है।

संघ मोलस्का का वर्गीकरण (Classification ) 

पाद, मेण्डल तथा कवच की रचना व स्थिति के आधार पर संघ मोलस्का को छः वर्गों में बाँटा गया है।

मोनोप्लेकोफोरा उदाहरण नियोपिलीना

एम्फीन्यूरा उदाहरण काईटन 

स्कैन्फोपोडा उदाहरण डैण्टेलियम 

गैस्ट्रोपोडा उदाहरण पाइला 

पेल्सीपाड़ा उदाहरण युनियो 

सिफेलोपोडा उदाहरण ऑक्टोपस

निओपिलीना (Neopilina)

यह एनिलीडा तथा मोलस्का संघों के बीच की संयोजी कड़ी है. इनकी खोज सन 1952 में हुई थी तथा अध्ययन सन 1959 में लेम्के तथा वैस्ट्रेण्ड ने किया।  इसे जीवित जीवश्म भी कहते है इसके कुछ आदि लक्षण है-बिना गुच्छिकाओ का तंत्रिका तंत्र क्लोम, पेशी तंत्रिका, व्रक्कक तथा जनद प्रत्येक खण्ड में बार बार दोहराए जाते है (ये लक्षण एनिलीडा संघ के है) . मोलस्का के लक्षण है -कवच, प्रवाह या मेण्डल तथा पाद की उपस्थिति।

ऑक्टोपस (Octopus) 

सिर पर 8 भुजाएँ होती है, इस कारण इसे दैत्यमीन या डेविल फिश कहते है। ये भुजाएँ रूपांतरित पाद है। कवच आंतरिक जल की तेज धारा जाइत की भाँति निकालकर तथा भुजाओं की सहायता से तैरता है। इसमें मसि ग्रन्थियाँ होती है।  इस मसि का मनुष्य की त्वचा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।  किन्तु यह शिकारी की घ्राण शक्ति को कुछ समय की लिए सुस्त कर देती है। ऑक्टोपस तेजी से रंग बदल सकते है। 

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