प्रयोगवाद की मुख्य प्रवृत्तियाँ

सन 1943 में सच्चिदानन्द हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' के नेतृत्व में हिंदी में एक आन्दोलनकारी लहर उठी जो प्रयोगवाद कहलायी। इसकी भूमिका में अज्ञेय ने लिखा है, "ये कवि नवीव राहों के अन्वेषी है। "

इस प्रयोगवाद नामक विचारधारा पर यूरोप के अनेक आधुनिक काव्य सम्प्र्दानो का प्रभाव है, जिसमे (1) प्रतीकवाद (बिम्बवाद) (2) अति यथार्थवाद, (3) अस्तित्त्ववाद, (4) फ्रायडवाद आदि मुख्य है।

प्रयोगवाद की मुख्य प्रवृत्तियाँ

(1) घोर व्यक्तिवाद-नयी कविता का प्रमुख लक्ष्य निजी मान्यताओं, विचारधाराओं और अनुभूतियों का प्रकाशन है। वस्तुतः इन कविताओं में व्यक्तिवाद को अभिव्यक्ति प्रदान की गयी है।

(2) दूषित वृत्तियों का यर्थाथ (एवं) नग्न रूप में चित्रण- जिन वृत्तियों को पहले साहित्य में अश्लील असामाजिक एवं अस्वस्थ समझा जाता है, उन्ही कुंठाओ और वासनाओ का वर्णन प्रयोगवाद कविता में मिलता है।

(3) निराशावादिता - इस धारा के कवि भूत- भविष्य की प्रेरणा और चिंता से मुक्त होकर केवल वर्तमान क्षण में ही जीना चाहते है।

(4) बौद्धकता एवं रूखापन - इस युग की कविताएँ ह्रदय की न होकर मस्तिष्क की दें है। इसलिए वे नीरस है और शायद चिरस्थायी साहित्य सम्प्रदा भी न हो। इन कविताओं में रागात्मक के स्थान पर विचारात्मकता अधिक परिलक्षित होती है इनका दावा है की भले ही ये कविताएँ ह्रदय पर प्रभाव न डालें, किन्तु बौद्धिता में भी रस होता है।

प्रयोगवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी प्रमुख रचनाएँ

सन 1943 में अज्ञेय ने 'तार सप्तक' का सम्पादन किया, फिर सन 1951 में 'दूसरा तार सप्तक और सन 1959 में तीसरा तार सप्तक का सम्पादन किया।

1. अज्ञेय - हरी घास पर क्षण भर, इत्यलम, इंद्रधनुष ये रौंदे हुए। 

2. धर्मवीर भारती - अंधायुग, कनुप्रिया, ठंडा लोहा।

3. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना - बाँस के पुल, एक सूनी नाव, काठ की घंटियाँ।

4. मुक्तिबोध - चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी ख़ाक धूल।

5. गिरिजा कुमार माथुर - धूप के धान, शिला पंख चमकीले, नाश और निर्माण।

6. भारत भूषण अग्रवाल - और अप्रस्तुत मन।

7. नरेश मेहता - संशय की एक रात, बन पांखी।

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