प्रोटीन, प्रोटीन की संरचना एवं वर्गीकरण को समझाइये

प्रोटीन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम बर्जीलियस ने किया। प्रोटीन सभी जीवों के शरीर में मुख्य घटक के रूप में पाया जाता है। जीवद्रव्य का लगभग 15% भाग प्रोटीन का बना होता है। यह जल के बाद सर्वाधिक मात्रा में होते है।

प्रोटीन प्रत्येक जीव में पाया जाने वाला एक जटिल कार्बिक यौगिक है जो बहुत से अमीनो अम्लों के अणुओ के मिलने से बनता है। प्रोटीन का अणुभार बहुत अधिक होता है।

प्रोटीन α अमीनो अम्ल के बहुलक है।  कोई भी कोशिका बिना प्रोटीन के जीवित नहीं रह सकती है।  प्रोटीन में पाए जाने वाले अमीनो अम्ल एक श्रखला में स्थित होते है।  एक प्रोटीन में अमीनो अम्ल की कई श्रंखलाए हो सकती है। इन श्रंखलाओ का आकार भी भीं भीं हो सकता है। यह अमीनो अम्ल की श्रंखलाए डाइसल्फाइड से जुडी होती है।

ऐसी प्रोटीन जिसमे केवल एक पेप्टाइड शृंखला होती है मोनीमेरिक कहलाती है ;जैसे राइबोन्यूक्लिएस  तथा जिसमे एक से अधिक पेप्टाइड शरणखए होती है ओलिगोमेरिक कहलाती है, जैसे हीमोग्लोबिन (इसमें 574 अमीनो अम्ल की चार पेप्टाइड श्रंखलाए होती है α, α,β,β), रूबिस्को इसमें 24 श्रंखलाए होती है।

प्रोटीन की सरंचना (Structure of Proteins)

प्रोटीन्स में अमीनो अम्लों की श्रंखलाओ के रूप के आधार पर प्रोटीन की संरचना निम्न चार प्रकार की होती है।

(1) प्राथमिक संरचना (Primary Structure) 

जब प्रोटीन में अमीनो अम्ल एक रैखिक कर्म में शृंखला बध्द रहते है तो इस प्रकार की संरचना  संरचना कहते है। इस रेखिक क्रम को DNA न्यूक्लियोटाइड का रेखिक क्रम निर्धारित करता है। 

(2) द्वितीयक संरचना (Secondary Structure)

जब प्राथमिक श्रंखला विभिन्न क्रमों में व्यवस्थित होकर या कुंडलित होकर गेंद अथवा हेलिक्स का रूप में लेती है, तब इस प्रकार की संरचना को द्वितीयक संरचना कहते है।  द्वितीयक संरचना में प्रोटीन की स्थिरता शृंखला के कुंडलो में स्थित डाइड्रोजन बँधो पर निर्भर करती है। हाइड्रोजन बांधो के कारण द्वितीयक संरचना वाले प्रोटीन ज्यादा स्थिर होते है।

प्रोटीन में द्वितीयक संरचना के दो प्रकार है 

  • α-हेलिक्स (α helix) इसमें एक पेप्टाइड बांध की Co दूसरे पेप्टाइड बंध के NH से हाइड्रोजन बंध के कारण जुड़ता है। इसलिए α-हेलिक्स 3 सही 1/2 अमीनो अम्ल के साथ कुंडलित होती है 

-हेलिक्स की एक पिच 5.4 A० होती है।  उदाहरण केरेटिन (बाल ), मायोसिन, एपिडर्मिस (बाह्य त्वचा) तथा फाइब्रिन (रूधिर थक्का) .

  • (b) β-प्लीटेड सतह (β pleated sheet) यह दो या अधिक पॉलीपेप्टाइड शृंखला के समांतर या समांतर व्यवस्थित होने से बनता है इनमे हाइड्रोजन बंध विभिन्न पॉलीपेप्टाइड के Co तथा NH के बीच बनते है। 

3. तृतीयक संरचना (Tertiary Structure)

कुछ द्वितीयक संरचना वाले प्रोटीन में लम्बी पेप्टाइड शृंखला का कुण्डलीकरण तथा वलन बन जाने के कारण प्रोटीन और संघनित हो जाता है। इस संरचना को तृतीयक संरचना कहते है। तृतीयक संरचना के बंध अधिक ताप या ph में बदलाव से टूट जाते है तृतीयक संरचना प्रोटीन त्रिवम संरचना देते है।

4. चतुर्थक संरचना (Quaternary Struture) इसमें एक से अधिक श्रंखलाए होती है, जिनमे प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक संरचनाए पाई जाती है तथा ये श्रंखलाएँ परतो में जुड़ी होती है। हीमोग्लोबिन में चतुर्थक संरचना पाई जाती है, जिसमे चार श्रखलाएँ (α तथा β) होती है।

प्रोटीन का वर्गीकरण (Classification of Proteins)

रासायनिक संघटन के आधार पर प्रोटीन्स को निम्नलिखित दो वर्गो में बांटे है 

1. सरल प्रोटीन्स (Simple Proteins)

यह केवल अमीनो अम्ल के बने होते है। इन्हे विलेयता के आधार पर पुनः निम्न में वर्गीकृत किया गया है।

(a) एल्ब्युमिनस यह जल में घुलशील होते है उदाहरण अण्ड, एल्ब्युमिन, सीरम आदि।

(b) ग्लोब्युलिन्स यह जल में अघुलशील लेकिन लवणों, क्षारो व् अम्लों के तनु घोलो में घुलनशील होते है 

उदाहरण सीरम, अण्ड 

(c) प्रोलेमिन्स यह जल तथा लवण विलयनों में अघुलनशील परन्तु 70 -80 % एल्कोहॉल तथा तनु अम्लों व क्षारो में विलेय होती उदाहरण जाऊ में होर्डिनम गेहू में ग्लैडिन तथा मक्का में जीन।

(d)एल्ब्युमिनोइड्स यह जल के साथ सभी उदासीन घोलो में अविलेय है लेकिन यह प्रबल क्षारो तथा अम्लों में विलेयशील होती है यह जन्तुओ के बाह्य आवरण तथा संयोजी ऊतकों का प्रमुख भाग है उदाहरण किरैटिन।

(e) ग्लूटेनिन्स यह जल तथा उदासीन विलयनों में अविलेय है परन्तु तनु क्षारो तथा अम्लों में विलेय होता है अधिक ताप पर यह थक्के में बल जाते है उदाहरण चावल में ओरिजेनिन तथ गेहू में ग्लूटेनिन।

(f) क्षारक प्रोटीन्स के गन  उदाहरण प्रोटेमिन्स बी हिस्टोन्स 

प्रोटेमिन्स गर्म करने पर थक्के में परिवर्तित नहीं होते है यह मछली के शुक्राणु तथा न्यूक्लिक अम्लों में पाए जाते है।

2. संयुग्मी प्रोटीन्स (Conjugated Proteins) 

इनमे प्रोटीन के साथ अन्य समूह भी पाए जाते है। इन अन्य समूहों को प्रोस्थेटिक समूह कहते है। इनको जल- अपघटन द्वारा प्रोटीन्स से अलग किया जाता है।

प्रोस्थेटिक समूह के आधार पर यह प्रोटीन मिनम प्रकार की होती है 

(a) ग्लाईकोप्रोटीन्स इनमे कार्बोहाइड्रेट प्रोस्थेटिक समूह के रूप में पाए जाते है उदाहरण लार में म्यूसिन व् रूधिर का हिपैरिन।

(b)  न्यूक्लिक अम्ल प्रोस्थेटिक समूह की तरह से पाया जाता है उदाहरण न्यूक्लिक प्रोटैमिन्स व् न्यूक्लियोसिस्टोन्स 

(c) लाइपोप्रोटीन्स इनमे लिपिड्स प्रोस्थेटिक समूह की तरह पाए जाते है। यह प्लाज्मा, दूध व अंडे में पाई जाती है।

(d) फोस्फोप्रोटीन्स इनमे फॉस्फोरिक अम्ल प्रोस्थेटिक समूह के रूप में पाया जाता है। उदाहरण दूध की केसिन।

(e) क्रोमोप्रोटीन्स इनमे रंगीन वर्णक प्रोस्थेटिक समूह के रूप में पाए जाते है। उदाहरण हीमोग्लोबिन, फ्लेवोप्रोटीन तथा साइटोक्रोम।

P-प्रोटीन छलनी नलिका में पाए जाने वाली प्रोटीन है जो अधिक पदार्थो के स्थांतरण में सहायता करते है। 

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