रहस्यवाद (काल निर्धारण कठिन)

आचर्य रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में, "चिन्तन के क्षेत्र में जो अद्वैतवाद है वही भावना के क्षेत्र में रहस्याद है। "

बाबू गुलाबराय ने "प्रकृति में मानवीय भावों का आरोप कर जड़-चेतन के एकीकरण की प्रवृत्ति के लाक्षणिक प्रयोगो को रहसवाद कहा है।

मुकुटधर पाण्डेय के अनुसार,"प्रकृति में सूक्ष्म सत्ता का दर्शन ही रहस्यावाद है। " रहस्यवाद का अर्थ है- 'छिपी हुई बात' . अतः रहस्यवाद का अर्थ हुआ- वह विचारधारा या वाद जिसका आधार अज्ञान है।  हिंदी कविता में रहस्यवाद का काल निर्धारण का काल निर्धारण करना कठिन है क्योंकि रहस्यवाद सृष्टि के आरम्भ से ही कवियों को प्रिय रहा है।

रहस्यवाद के तीन प्रमुख लक्षण है -

(1) अद्वैतवादी विचारधारा की स्वीकृति- आत्मा और परमात्मा एक है, अभिन्न है।

(2) उस असीम शक्ति से रागात्मक संबंध की अनुभूति।

(3) भाषा के माध्यम से अनुभूतियों की अभिव्यक्ति।

(4) सर्वप्रथम रहस्यवाद कवियों में जयशंकर प्रसाद सर्वप्रथम है। तदोपरान्त निराला जी ने "तुम तुंग हिमाचल शृंग मई चंचलगति सुर-सरिता" कहकर अलौकिक के साथ अपना स्पष्ट संबंध जोड़ लिया।  पंत जी भी प्रारम्भ में रहस्यवादी रहे।

रहस्यवाद की साधना में अकेली महादेवी वर्मा विरह के गीत ही गाती रही।

रहस्यवाद की साधना में अकेली महादेवी वर्मा विरह के गीत ही गाती है।

रहस्यवाद की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

(1) अद्वैतवादी मान्यता, (2) दाम्पत्यप्रेम पद्द्ति, (3) प्रेम में स्वच्छता एवं पवित्रता, (4) दैन्य एवं आत्म-समर्पण की भावना, (5) प्रतीकात्मकता, (6) मुक्तक गीति शैली।

रहस्यवाद के प्रमुख कवि

कबीर, प्रसाद, पन्त निराला, महादेवी सभी ने  अपनाया है।  ये सभी रहस्यवाद है।  रामकुमार वर्मा आदि कवि अंशतया रहस्यवाद के कुछ सोपानो पर चढ़ सके इसलिए उनकी रचनाओं में कुछ स्थानों पर रहस्यवाद की झलक मिलती है।

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