संघ प्रोटोजोआ के प्रमुख लक्षण और वर्गीकरण

प्रोटोजोआ का प्रथम अध्ययन ल्यूवेन्हॉक (1677) ने किया। गोल्डफ़्स (1817) ने इस संघ को प्रोटोजोआ नाम दिया।  इनके अध्ययन को प्रोटोजोआ विज्ञान कहते है।

प्रमुख लक्षण (Important Charaers)

प्रोटोजोआ संघ के जंतु जलीय तथा एकल रूप में रहते हैं. 

प्रमुख लक्षण

प्रोटोजोआ संघ के जंतु जलीय तथा एकल रूप में रहते हैं।इनका शरीर नग्न या नहीं  पेलिकल द्वारा ढका होता है, कुछ में कठोर खोल में बंद होता है । इनमे गमन के लिए पादाभ  अमीबा में, कशाभिकाए युगलिना में तथा रोमाभ पैरामीशियम में पाए जाते हैं।

इनमे पोषण प्राणिसम पदपसम आए मृतोपजीवी vya परजीवी होता है। प्राणिसाम सदस्यों में पाचन खाद्य धानियो में होता है 

ये अन्त: कोशिकाओं श्रम विभाजन प्रदर्शित करते हैं। इसीलिए प्रोटोजोआ को जीवद्रवय के स्तर पर गठित जंतु कहते है । इनमें उत्सर्जन संकुचनशील रिक्तिका द्वारा अथवा शारीरिक सतह से होता है ।

इनमे जनन अलैंगिक या लैंगिक होता है । जनन के लिए या प्रतिकूल वातावरणीय दशाओं में सुरक्षा के लिए परिकोष्ठ्न की व्यापक क्षमता होती है । उदाहरण अमीबा, पैरामीशियम।

वर्गीकरण 

गमनीय अंगों के आधार पर संघ प्रोटोजोआ को चार वर्गों में विभाजित किया जाता है 

() मेस्टिगोफोरा या फ्लैजिलेटा उदाहरण ट्रिपेनोसोमा, लिश्मनिया

() सरकोडीना उदाहरण अमीबा, एंटामिबा 

() स्पोरोजोआ उदाहरण प्लाजमोडियम

() सिलीएटा उदाहरण पैरामीशियम, वोर्टोसेला, ओपेलाइना

अमीबा

इसकी खोज रसेल वॉन रोजनहॉप ने 1755 में की। इसकी शरीर प्रद्र्व कला से ढका रहता है । प्रद्र्व्य कला उत्सर्जन व श्वसन दोनो का कार्य करती है अमीबा कुटपादो द्वारा गमन करता है । अमीबीय गति का सॉल जैला सिद्धांत हाईमैन ने दिया।

अमीबा में प्रसारण संकुचनशील रिक्तिका द्वारा होता है। अमीबा में कंकाल नही पाया जाता है।यदि अमीबा को आसुत जल में रखा जाए, तो संकुचंशील रिक्तिका बहुत तेजी से कार्य करती है।यदि अमीबा को नमक के पानी में रखा जाए तो संकुचनशील रिक्तिका गायब हो जाएगी ।अमीबा में पोषण की विधि प्राणिसंभोजी है । अमीबा भक्षकाणु क्रिया की विधि द्वारा भोजन ग्रहण करता है।

अमीबा में अलैंगिक जनन द्विवीखंड विधि द्वारा होता है।

प्लाजमोडियम : मलेरिया परजीवी

मलेरिया फैलाने वाला अंतः परजीवी है जिसकी खोज सबसे पहले चार्ल्स लेवरॉन ने 1880 में की। रोनाल्ड रॉस ने 1897 संविधान में में मलेरिया और मच्छर के बीच संबंध को खोजा। ग्रेसी ने 1898 में मादा एनोफिलिज मच्छर में प्लाज्मोडियम के जीवन चक्र का वर्णन कीजिए।

दोस्तों में अपना जीवन चक्र पूरा करता है प्रथम मनुष्य तथा द्वितीय मच्छर प्लाज्मोडियम का अलैंगिक जीवन मनुष्य में तथा दैनिक जीवन मच्छर में घटित होता है।

प्लाज्मोडियम की संक्रमण सी अवस्था बीजाणुज अवस्था है यकृत की कोशिका में स्पू्रोजोइट कोशिका द्रव्य का भक्षण करता है और क्रिप्रोजॉइट में बदल जाता है,जो केंद्रक बहुविभाजित द्वारा अनेक संतति केंद्रको में विभाजित होकर शाईजॉन्ट अवस्था बनाता है।

क्रिपटोमीरोज़ॉइट नई कोशिका के कोशिकाद्रव्य का भक्षण कर छोटे मैक्रोमेटाक्रिप्टोजॉइन तथा बड़े मैगामेटाक्रिप्टोजॉइन बनाते है । लाल रूधिराणू में प्रवेश कर मैक्रोमेटाक्रिप्टोजॉइन युवा ट्रोफोजॉइन में रूपांतरित हो जाता है । यह केंद्राक को एक किनारे पर व्यवस्थित कर सिग्नेट मुद्रिका प्रावस्था बना लेता है।

ट्रोफोजोइन से स्त्रावित एन्जाइन द्वारा रूधिराणु की हीमोग्लोबिन प्रोटीन तथा रंगा पदार्थ हीमेटिन में प्रोटोपघटन होता है। हीमेटिन विषैले अपाच्य छोटे छोटे कणों के रूप में कोशिकाद्रव्य कहते है। अमीबीय ट्रोफोजोइत वृद्धि कर शाइजॉनट और तत्पश्चात मिरोज़ोइट या शाइजॉइट बनाता है। लाल रूधिराणुओ से निकलकर मीरोजॉइट युग्मकजनक बनाते हैं।

मादा एनोफिलीज मच्छर द्वारा संक्रमित मनुष्य का रूधिर चूसते समय गैमीटोसाइट मच्छर में प्रवेश कर जाते है और युग्मकजनन तथा बीजाणुजनन द्वारा लैंगिक चक्र पूर्ण करते है। बीजाणुजनन द्वारा स्पोरोजोइटर्स का निर्माण होता है, जो संक्रमणशील अवस्था है।

मच्छर में पूरा होने वाला जीवन चक्र स्पोरोगोनी एवं मनुष्य में पूरा होने वाला जीवन चक्र शिजोगोनी कहलाता है।

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