सौरमण्डल, स्थल मण्डल, वायुमण्डल
सौरमण्डल
• सूर्य तथा उसके चारों ओर परिभ्रमण करने वाले ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु, उल्का-पिण्डों एवं क्षुद्र ग्रहों को संयुक्त रूप से सौरमण्डल कहा जाता है।
• पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। ग्रह तथा अन्य पिण्ड सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाते हैं, इस सिद्धान्त का प्रतिपादन कॉपरनिकस ने किया था।
• ग्रहों की गति के नियम का पता केपलर ने लगाया था।
• सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले ग्रहों की संख्या 8 है।
• चेक गणराज्य की राजधानी प्राग में अगस्त 2006 में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञानी संघ (आई.ए.यू.) की बैठक में यम (प्लूटो) का ग्रह का समाप्त कर दिया गया है।
• आकार के अनुसार ग्रह हैं (घटते क्रम में) - बृहस्पति, शनि, अरुण (यूरेनस), वरुण (नेपच्यून), पृथ्वी, शुक्र, मंगल तथा बुध।
• सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रह हैं - बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरुण (यूरेनस) तथा वरुण (नेपच्यून)।
स्थल मण्डल
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना
आन्तरिक संरचना से सम्बन्धित जानकारी भूकम्पी तरंगों, पृथ्वी के अन्दरूनी भागों उच्च ताप एवं दाब तथा उल्काश्म साक्ष्यों से प्राप्त होती है।
पृथ्वी की आन्तरिक संरचना को तीन विभिन्न परतों में बाँटा गया है-
(i). भू-पर्पटी
(ii). मैटल
(iii). क्रोड
• भू-पर्पटी (Crust)
सबसे बाह्य परत है जिसकी मोटाई पृथ्वी की सतह से लगभग 100 किमी नीचे तक है। इसकी ऊपरी परत अवसादी चट्टानों से बनी है जिसमें सिलिका एवं एल्युमीनियम की प्रचुरता होती है।
• मैंटल (Mantle)
भू-पर्पटी के नीचे पृथ्वी की सतह से 100 से 2900 किमी के मध्य स्थित है। भू-पर्पटी एवं मैटल के मध्य पायी जाने वाली असतत सतह को मोहोरोविसिस या मोहो असतता कहा जाता है।
• क्रोड या कोर (Core)
मैटल के नीचे पृथ्वी की सतह से 2900 से 6400 किमी के मध्य स्थित है। यह निकेल व लोहे से बनी होती है।
• पृथ्वी की सतह से अन्दरूनी भाग की ओर जाने पर प्रति 32 मीटर जाने पर औसतन 1°C तापमान में वृद्धि होती है।
चट्टान
उत्पत्ति के अनुसार चट्टान तीन प्रकार की होती हैं- (i) आग्नेय चट्टान, (ii) अवसादी चट्टान, (iii) रूपान्तरित चट्टान।
(i). आग्नेय चट्टान का निर्माण पृथ्वी के अन्दरूनी भाग से ज्वालामुखी विस्फोट के समय उत्सर्जित मैग्मा अथवा लावा के निक्षेपण से होता है। उदाहरण- ग्रेनाइट, बेसाल्ट आदि।
(ii). अवसादी चट्टान का निर्माण अवसादों अथवा तलछटों के निक्षेपण से होता है तथा इनमें जीवाश्म पाये जाते हैं। कोयला एवं पेट्रोलियम अवसादी चट्टानों में पाये जाते हैं। उदाहरण- बलुआ पत्थर, चूना पत्थर, शेल, कांग्लोमरेट आदि।
(iii). रूपान्तरित अथवा कायान्तरित चट्टान का निर्माण अवसादी एवं आग्नेय चट्टानों में ताप, दाब एवं रासायनिक अभिक्रियाओं के परिणामस्वरूप हुए परिवर्तन के कारण होता है।
आग्नेय/अवसादी चट्टान | रूपान्तरित चट्टान |
ग्रेनाइट | नीस |
चूना पत्थर | संगमरमर |
बलुआ पत्थर | क्वार्टजाइट |
शैल | स्लेट, सिस्ट. |
भूकम्प
पृथ्वी के अन्दरूनी भाग में कई प्रकार की भूगर्भिक प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप धरातल में उत्पन्न कम्पन को भूकम्प कहा जाता है। भूकम्प के
दौरान तीन प्रकार की तरंगों का उद्भव होता है- (i) प्राथमिक (P), (ii) द्वितीयक (S), (iii) तृतीयक (Surface or 'L')।
केन्द्र (Focus)
पृथ्वी की सतह के नीचे जिस स्थान पर भूकम्प की उत्पत्ति होती है, उसे केन्द्र कहा जाता है।
अधिकेन्द्र (Epicentre)
केन्द्र के ठीक ऊपर पृथ्वी की सतह पर स्थित स्थान को अधिकेन्द्र कहा जाता है।
भूकम्प का विश्व वितरण
(i). प्रशान्त महासागरीय तटीय पेटी,
(ii). मध्य महाद्वीपीय पेटी,
(iii). मध्य अटलाण्टिक पेटी।
विश्व में सर्वाधिक भूकम्प प्रशान्त महासागरीय तटीय पेटी में उत्पन्न होते हैं। विश्व में सर्वाधिक भूकम्प जापान में उत्पन्न होते हैं।
ज्वालामुखी
पृथ्वी की सतह पर वह प्राकृतिक छिद्र अथवा दरार जिसके माध्यम से पृथ्वी के अन्दरूनी भाग से गर्म तरल पदार्थ (मैग्मा), गैस, राख, जल, वाष्प, शैलखण्ड इत्यादि बाहर निकलते हैं, ज्वालामुखी कहा जाता है।
इस छिद्र को क्रेटर अथवा विवर कहा जाता है जो कीपाकार (Funnel shaped) होता है। उद्गार अवधि के अनुसार ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं
(i). सक्रिय ज्वालामुखी एटना (सिसली), स्ट्राम्बोली (लिपारी), मेयान (फिलीपिन्स)।
(ii). प्रसुप्त ज्वालामुखी विसुवियस (इटली), फ्यूजीयामा (जापान), क्राकाटोवा (सुण्डा जलडमरूमध्य)।
(iii). मृत ज्वालामुखी किलीमंजारो (अफ्रीका), चिम्बाराजो (द० अमेरिका), देवमन्द, कोह सुल्तान (ईरान)। • स्ट्राम्बोली को 'भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ' कहा जाता है।
• ज्वालामुखी का विश्व वितरण - (i) परि-प्रशान्त महासागरीय पेटी, (ii) मध्य महाद्वीपीय पेटी (iii) मध्य अटलाण्टिक पेटी, (iv) पूर्वी अफ्रीकी भ्रंश घाटी पेटी
• विश्व का लगभग 2/3 सक्रिय ज्वालामुखी परि-प्रशान्त महासागरीय पेटी में पाया जाता है अतः इस क्षेत्र को 'अग्नि वलय' (fire ring of the Pacific) भी कहा जाता है।
धरातल की प्रमुख स्थलाकृतियाँ
(a). पर्वत
(b). पठार एवं
(c). मैदान
(a). पर्वत
पर्वतों का वर्गीकरण निम्न है
(i). ब्लॉक पर्वत वॉस्जेस (फ्रांस), साल्ट रेंज (पाकिस्तान), ब्लैक फॉरेस्ट (जर्मनी), विन्ध्याचल एवं सतपुड़ा (भारत)
(ii). वलित या मोड़दार पर्वत हिमालय, रॉकीज, एण्डीज, आल्पस, एटलस आदि।
(iii). संचित या संग्रहित पर्वत मेयन (फिलीपीन्स), फ्यूजीयामा (जापान), पोपोकैटीपेटल (मेक्सिको), विसुवियस (इटली) इत्यादि।
(iv). अवशिष्ट या घर्षित पर्वत अपलेशियन, अरावली, सतपुड़ा, विन्ध्याचल, पश्चिमी घाट, पूर्वी घाट इत्यादि।
(b). पठार
पठार निम्न प्रकार के होते हैं-
(i). हिमानी पठार
(ii). लोयस पठार
(iii). लावा पठार
(iv). अन्तर्पर्वतीय पठार
(v). गिरिपदीय या पर्वतपदीय पठार
(vi). महाद्वीपीय पठार
(vii). गुम्बदाकार पठार
(c). मैदान
भूपटल पर निचले और समतल क्षेत्र मैदान कहलाते हैं। पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल के 41% भाग पर मैदानों का विस्तार है। ये 500 फीट से कम ऊँचाई वाले होते हैं।
अपरदनात्मक मैदान
नदी, हिमानी, पवन जैसी शक्तियों के अपरदन से इस प्रकार के मैदान बनते हैं। जो निम्न हैं
(i). लोएस मैदान
(ii). कर्स्ट मैदान
(iii). समप्राय मैदान
(iv). ग्लेशियल
(v). रेगिस्तानी मैदान
निक्षेपात्मक मैदान
नदी निक्षेप द्वारा बड़े-बड़े मैदानों का निर्माण होता है। इसमें गंगा एवं सतलज के मैदान, मिसीसिपी एवं ह्वांगहों के मैदान प्रमुख हैं। इस प्रकार के मैदानों में जलोढ़ का मैदान, डेल्टा का मैदान प्रमुख हैं
निक्षेपण से बने मैदान
(i). गिरिपाद जलोढ़ मैदान
(iv). लावा मैदान
(ii). बाढ़ मैदान
(iii). डेल्टा मैदान
(v). पवन निक्षेपित मैदान
वायुमण्डल
वायुमण्डल की संरचना
वायुमण्डल की प्रमुख परतें हैं
(i). क्षोभमण्डल (Troposphere)
• यह वायुमण्डल की सबसे निचली परत है जिसमें वायुमण्डल के सम्पूर्ण भार का लगभग 75% पाया जाता है।
• सभी मौसमी घटनाएँ इस परत में सम्पन्न होती हैं।
• इस परत में ऊँचाई के साथ तापमान में गिरावट होती है (6.4°C प्रति किमी)।
• धरातल से इसकी ऊँचाई 8 किमी (ध्रुवों पर) तथा 18 किमी (विषुवत रेखा पर) है।
वायुमण्डल का संघटन
गैस | प्रतिशत आयतन |
नाइट्रोजन | 78.08 |
ऑक्सीजन | 20.92 |
ऑर्गन | 0.93 |
नियॉन | 0.0018 |
कार्बन डाइ-ऑक्साइड | 0.03 |
हीलियम | 0.0005 |
ओजोन | 0.00006 |
हाइड्रोजन | 0.00005 |
(ii). समताप मण्डल (Stratosphere)
• यह 18 से 32 किमी की ऊँचाई तक पाया जाता है।
• इस परत में ताप समान रहता है।
• जलवाष्प एवं धूल-कण नहीं पाये जाते हैं, बादलों का निर्माण नहीं होता है तथा मौसमी घटनाएँ नहीं घटती हैं।
• वायुयान चालकों के लिए आदर्श परत है।
(iii). मध्यमण्डल (Mesosphere)
• यह समतापमण्डल की सीमा से 60 किमी की ऊँचाई तक फैला हुआ है।
• ओजोन परत (20-40) किमी) की उपस्थिति के कारण इसे ओजोन मण्डल भी कहा जाता है।
• इस परत में तापमान ऊँचाई के साथ बढ़ता है।
• इसमें ताप व्युत्क्रम की स्थिति पाई जाती है।
(iv). आयनमण्डल (Ionosphere)
• यह 60 किमी से 640 किमी तक विस्तृत है।
• इस परत द्वारा छोटी रेडियो तरंगे परावर्तित की जाती हैं।
• संचार उपग्रह इसी परत में अवस्थित होते हैं।
(v). बर्हिमण्डल (Exosphere)
• यह आयनमण्डल के ऊपर की परत है जिसकी कोई ऊपरी सीमा निर्धारि नहीं है।
• इस परत में हाइड्रोजन एवं हीलियम गैसों की प्रधानता होती है।
You must be logged in to post a comment.