हाइड्रा की खोज ल्यूवेनहॉक ने की और 1744 में ट्रेम्बले ने पूर्ण वर्णक किया, जबकि हाइड्रा नाम लीनियस ने 1758 में दिया।
शरीर की अरीय सममिति होती है। हाइड्रा की देहभित्ति द्विजनसतरी होती है। बाहरी घनाकार कोशिकाओं के बने अधिचर्म में उपकला पेशी कोशिकाएं, अन्तराली कोशिकाएं, ग्रंथिल पेशी कोशिकाएं, संवेदी कोशिकए, तंत्रिका कोशिकाएं, जनन कोशिकाएं तथा दंश कोशिकाएं उपस्थित होती है।
उपकला पेशी कोशिकाएं संकुचन अन्तराली कोशिकाएं वृद्धि जनन, पुनरुदभवन, ग्रंथिल पेशी कोशिकाएं प्रचलन, संवेदी कोशिकाएं संवेदना ग्रहण करने, तंत्रिका कोशिकाएं प्रेरणा प्रसारण, जनन कोशिकाएं नर युग्मक व मादा युग्मक बनाने तथा दंश कोशिकाएं सुरक्षा तथा आक्रमण का कार्य करती है।
जठरचर्म में पोषण पेशी कोशिकाएं अन्तराली कोशिकाएं तंत्रिका कोशिकाएं संवेदी कोशिकाएं तथा ग्रंथि या स्त्रावी कोशिकाएं उपस्थित होती है।
हाइड्रा सबसे छोटा पॉलिप होता है। हाइड्रा विरिडिसीमा हरे रंग का तथा हाइड्रा ओलिगाइकटिस भूरे रंग का होता है। हाइड्रा विरिडिसीमा की पोषक पेशी कोशिकाओं में जूक्लोरेला अर्थात क्लोरेला विरिडिस शैवाल सहजीवी के रूप में रहता है।
इनके शरीर पर उपस्थित स्पर्शक गमन, भोजन ग्रहण, एवं शुत्रओं से सुरक्षा में सहायता करते है। हाइड्रा की देहगुहा सीलेंटॉन या जठरवाही गुहा कहलाती है। हाइड्रा में गुदा नहीं होती है।
पेनेट्रिंट्स सबसे बड़ी और रचना में सबसे जटिल दंशकोशिका है। दंशकोशिका के मुख्य भाग सम्पुट की गुहा में हिप्नोटरोक्सिन नामक विषैला तरल भरा रहता है, जो शिकार को बेहोश कर देता है।
हाइड्रा की जठरवाहिनी गुहा में बाह्य पाचन तथा पोषक पेशी कोशिकाओं में अन्तः कोशिकाकीय पाचन होता है। हाइड्रा में पुनरूदभवन उतसर्जन के लिए विशिष्ट कोशकाएँ नहीं होती है। इसमें विदलन सम्पूर्ण तथा पूर्णभंजि होता है हाइड्रा में हाइपोस्टोम के आधार भाग में स्पर्शको की उद्गमन रेखा पीछे का कुछ हिस्सा वृध्दि क्षेत्र होता है
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